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Tuesday, June 30, 2009

अध्ययन की शुरुआत

हर परस्परता के बीच जो हमारी आँखों से खाली-स्थली जैसा दिखता है, वह सत्ता ही है। यह खाली नहीं है - यह ऊर्जा है। यह ऊर्जा सभी वस्तुओं में पारगामी है। पत्थर में, मिट्टी में, पानी में - सभी वस्तुओं में यह पारगामी है। एक परमाणु-अंश से लेकर इस विशाल धरती तक सभी वस्तुओं में यह पारगामी है।

वस्तुओं की ऊर्जा-सम्पन्नता ही सत्ता की पारगामीयता की गवाही है।

मानव में यह ऊर्जा-सम्पन्नता ज्ञान के रूप में होता है। यह ज्ञान है - ४ विषयों (आहार, निद्रा, भय, मैथुन) का ज्ञान, ५ संवेदनाओं (शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध) का ज्ञान, ३ ईश्नाओं (पुत्तेष्णा, वित्तेष्णा, लोकेषणा) का ज्ञान, और उपकार का ज्ञान। इन १३ शीर्षों में मनुष्य के पास ज्ञान "करने" के रूप में आता है। इन १३ शीर्षों के अलावा मनुष्य और कुछ कर भी नहीं सकता। जिसका ज्ञान होता है, वही हम कर पाते हैं। ४ विषयों का हमें ज्ञान है, इसलिए हम उन विषयों का उपयोग कर पाते हैं। ५ संवेदनाओं का हमें ज्ञान है, तभी उन संवेदनाओं को हम पहचान पाते हैं।

समझना ही ज्ञान है। ज्ञान ही मनुष्य के करने में आता है।

४ विषयों की बात जीव-संसार में "करने" के रूप में है। जीव-जानवर ४ विषयों को भोगते रहते है, उसी के अर्थ में उनकी ५ संवेदनाएं काम करती रहती हैं। जैसे - आहार विषय के लिए शेर गंध इन्द्रिय का प्रयोग करता है। मनुष्य संवेदनाओं के आधार पर विषयों को पहचानता है। जैसे - मनुष्य जीभ से अच्छा लगने के लिए आहार ढूंढता है। मनुष्य और जीव-जानवरों में यह फर्क हुआ। मनुष्य ने संवेदनाओं के आधार पर ही सर्वप्रथम ज्ञान को स्वीकारना शुरू किया।

मनुष्य ने इन्द्रियों को राजी रखने के लिए ज्ञान को स्वीकारना शुरू किया। क्यों शुरू किया? सुखी होने के लिए। मानव का अध्ययन इसी बिन्दु से शुरू होता है।

इस विधि से जब हम अध्ययन करने जाते हैं, तो यह विगत के किसी भी प्रस्ताव से जुड़ता नहीं है। विगत में हम जो कुछ भी किए - अच्छा, बुरा, खरा, खोटा - उसका screen ही ख़त्म। अध्ययन का reference यह हुआ, न कि विगत का कोई अवशेष!

विगत से आपके पास मानव-शरीर है, और भाषा (शब्द-संसार) है। और विगत का कोई पुच्छल्ला इस प्रस्ताव के अध्ययन के लिए आपको नहीं चाहिए। शब्द/भाषा विगत से है - परिभाषाएं इस प्रस्ताव की हैं। परिभाषाएं ज्ञान के अर्थ में हैं।

यहाँ से आप अध्ययन शुरू करिए।

मानव का अध्ययन में हम चलें तो पहली बात आती है - यह शब्द, स्पर्श, गंध, रूप, रस इन्द्रियों का ज्ञान किसको होता है? शरीर को यह ज्ञान होता है, या शरीर के अलावा किसी चीज़ को होता है?

विगत में ज्ञान-ज्ञाता-ज्ञेय ब्रह्म को ही बताया था। साथ ही ब्रह्म को अव्यक्त और अनिर्वचनीय बता कर रास्ता बंद कर दिया था।

उसके विकल्प में यहाँ प्रस्तावित है - ज्ञान व्यक्त है और ज्ञान वचनीय भी है। ज्ञान को हम समझ सकते हैं, और समझा भी सकते हैं। ज्ञान का मतलब ही यही है - जिसे हम समझ भी सकें, और समझा भी पाएं। ज्ञान शरीर को नहीं होता। ज्ञान जीवन को होता है। जीवन ही ज्ञाता है। इन्द्रियों से भी जो ज्ञान होता है वह जीवन को ही होता है। जीवन ही समझता है। जीवन ही जीवन को समझाता है।

प्रश्न: विगत ने हमको क्या दिया फ़िर?

उत्तर: विगत में आदर्शवाद ने हमको शब्द-ज्ञान दिया - जिसके लिए उनका धन्यवाद है। फ़िर भौतिकवाद ने हमको कार्य-ज्ञान दिया - उसके लिए उनका धन्यवाद है। इन दोनों से मनुष्य को जो ज्ञान हुआ वह पर्याप्त नहीं हुआ। कुछ और समझने की ज़रूरत बनी रही। इसकी गवाही है - धरती का बीमार होना।

धरती क्यों और कैसे बीमार हो गयी, और यह ठीक कैसे होगी - इसके लिए जो ज्ञान चाहिए वह आदर्शवाद और भौतिकवाद दोनों के पास नहीं है।

यही मध्यस्थ-दर्शन के अध्ययन का reference point है। तर्क-संगत होने के लिए, व्यवहार-संगत होने के लिए, अपने-आप का मूल्यांकन करने के लिए, और स्वयं का अध्ययन करने के लिए - यही reference point है। अध्ययन के लिए इस reference point को अपने में अच्छे से स्थिर बनाना चाहिए, वरना हम बारम्बार वही पुराने में गुड-गोबर करने लगते हैं।

इस तरह - इस विकल्प को सोचने के लिए, अध्ययन करने के लिए हमारे पास एक आधार-भूमि तैयार हुई।

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६, अमरकंटक)

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