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Wednesday, June 17, 2009

व्यापक, साम्य-ऊर्जा, ज्ञान

अस्तित्व में व्यापक वस्तु है - जो आप हमारे बीच, और हर परस्परता के बीच दूरी के रूप में दिखाई पड़ती है। परस्परता में दूरी के रूप में जो वस्तु है, इसी में हम डूबे हैं, घिरे हैं - यह भी हमें समझ में आता है। तीसरे, इसमें सभी जड़-चैतन्य वस्तुएं भीगे हुए हैं - जिससे जड़-वस्तुएं चुम्बकीय-बल संपन्न हैं, और चैतन्य वस्तुएं ज्ञान-संपन्न हैं। कोई भी जड़ या चैतन्य ऐसी वस्तु नहीं है - जो ऊर्जा-संपन्न नहीं हो। साम्य-ऊर्जा सभी को प्राप्त है। व्यापक वस्तु ही साम्य-ऊर्जा है। इसको मैं अच्छे से समझा हूँ।

प्रश्न: व्यापक को समझने का क्या प्रयोजन है?

उत्तर: इसको समझने से व्यवस्था में जीने के लिए हम समर्थ हो जाते हैं। जब तक यह समझ में नहीं आता है, तब तक हम व्यवस्था में जियेंगे नहीं! यह शतशः सही है।

ज्ञान ज्ञानेन्द्रियों से गम्य नहीं है। नाक से यह सूंघने में नहीं आता। आँख से यह दिखाई नहीं देता। जीभ से यह चखने में नहीं आता। कान से यह सुनाई नहीं देता। त्वचा से यह छूने में नहीं आता। इन्द्रियों से जो गम्य होता भी है - वह समझ में आता है। अस्तित्व में वस्तुओं का "प्रयोजन" समझ में ही आता है। प्रयोजन आंखों में दिखता नहीं है। इन्द्रियगम्य वस्तु का प्रयोजन इन्द्रियों से गम्य नहीं है। यह केवल समझ में ही आता है। समझता जीवन ही है। समझने वाला भाग आंखों में नहीं आता।

इन्द्रियों से जीवन को सूचना मिलती है, उसको समझता जीवन ही है। जैसे - यह वस्तु गर्म है। "गर्म" को समझता कौन है? समझता जीवन ही है। इस तरह इन्द्रियगम्य वस्तुओं में भी समझने का भाग शेष रहता ही है। समझे बिना कुछ इन्द्रियगम्य हुआ, यह हम कह भी नहीं सकते। मृत शरीर में कोई गर्म-ठंडे की पहचान सिद्ध नहीं होती।

कोई वस्तु आंखों से दिखता है, पर उसको हम समझे नहीं हैं तो उसको हम देखे हैं, इसका कोई प्रमाण नहीं है।

दो बातें हुई - समझ में आया वस्तु देखने को मिलना। दूसरे - देखने में आया वस्तु समझने को मिलना।

इन्द्रिय-गम्य वस्तुएं हमको देखने के बाद समझ में आता है। जो वास्तविकताएं इन्द्रियगम्य नहीं हैं - वे हमको समझने के बाद देखने को मिलता है। जैसे - व्यापक वस्तु को आप समझ गए तो आप-हमारे बीच की दूरी के रूप में वह आपको दिख गयी। यदि आप व्यापक वस्तु को समझे नहीं है, तो वह आप हमारे बीच दूरी के रूप में है - यह आपसे सत्यापित करना बनेगा नहीं!

प्रश्न: आपने बता दिया, अब हम भी बोल सकते हैं कि व्यापक वस्तु ऐसा है!

उत्तर: आप बोल अवश्य सकते हैं, पर बिना आप उसको समझे समझा नहीं पायेंगे! इस बात पर जितने प्रश्न बन सकते हैं, उनका सामना करना अनुभव के बिना बनेगा नहीं! व्यापक वस्तु पारगामी है, यह समझाना तभी बनेगा जब व्यापक में अनुभव किया हो। यह वैसे ही है - कोई वस्तु खट्टा है, यह दूसरे को समझाना आपसे तभी बनेगा जब आपने स्वयं उसको चखा हो। व्यापक को हम अनुभव के स्तर पर समझते हैं, और उसमें सुख पाते हैं। हम स्वयं व्यापक में डूबे हैं, भीगे हैं, घिरे हैं - इसका पहला सुख यही है।

मानव में ऊर्जा ज्ञान-सम्पन्नता के रूप में समझ आती है। ज्ञान हमको व्यापक वस्तु के रूप में प्राप्त है।

- जीवन विद्या राष्ट्रीय सम्मलेन २००६, कानपुर में बाबा श्री नागराज शर्मा के उदबोधन पर आधारित

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