एक बात मैं ठोस रूप में कहता हूँ - "हर मनुष्य सत्य के लिए प्यासा है।" वह प्यास ज्ञान, विवेक, और विज्ञान को समझने से ही बुझ सकती है। उसको समझाने का माद्दा मेरे पास है। इस प्रस्ताव को जो अध्ययन किए हैं, उनके पास है। इस आश्वासन पर यदि हम विश्वास कर सकते हैं तो सत्य को समझना हमारे लिए सम्भव है।
व्यापक में संपृक्त प्रकृति अस्तित्व-समग्र है। व्यापक में सम्पूर्ण प्रकृति डूबी, भीगी, घिरी है। व्यापक वस्तु को आप "ईश्वर" नाम दे सकते हैं, यदि इच्छा हो तो! मूल सत्ता यही है। मूल ऊर्जा यही है। जड़ प्रकृति में यही ऊर्जा-सम्पन्नता चुम्बकीय-बल के रूप में प्रमाणित है। मानव में यही ऊर्जा ज्ञान के रूप में प्रमाणित है। जीव-जानवरों में यही ऊर्जा "जीने की आशा" के रूप में प्रमाणित है। वनस्पतियों में यही ऊर्जा "पुष्टि" के रूप में प्रमाणित है। इस तरह ऊर्जा-सम्पन्नता "धर्म" के रूप में प्रकृति की हर वस्तु से अविभाज्य है।
मनुष्य को अपने ज्ञान पर विश्वास करने के लिए "सत्य" को पहचानना होगा।
सह-अस्तित्व परम सत्य है। व्यापक वस्तु में जड़-चैतन्य वस्तु संपृक्त है। प्रकृति तीन तरह की क्रियाओं के स्वरूप में है - भौतिक क्रिया, रासायनिक क्रिया, और जीवन क्रिया। इन तीन प्रकार की क्रियाओं के जोड़-जुगाड़ से चार अवस्थाएं प्रकट हुई हैं - पदार्थावस्था, प्राणावस्था, जीवावस्था, और ज्ञानावस्था। ज्ञानावस्था में मानव है। मानव समझने वाली इकाई है। जीव-जानवर समझने वाली इकाई नहीं है। जीव-जानवर अपने वंश के अनुसार व्यवस्था में जीते हैं। पेड़-पौधे बीज के अनुसार व्यवस्था में जीते हैं। पदार्थ-संसार परिणाम के अनुसार व्यवस्था में है। इस तरह मनुष्येत्तर (मनुष्य को छोड़ कर) सभी अवस्थाएं अपने त्व-सहित व्यवस्था में हैं। मानव भी मानवत्व के साथ व्यवस्था में रह सकता है। मूल मुद्दा यही है।
मनुष्य में कल्पनाशीलता और कर्म-स्वतंत्रता मौलिक है। इसी के कारण वह दौड़ता है। दौड़ते-दौड़ते थक-थकाकर कहीं बैठ जाता है। अब यहाँ कह रहे हैं - "थकें नहीं! इस कल्पनाशीलता और कर्म-स्वतंत्रता को सत्य को समझने के लिए उपयोग करें।" सत्य को मैंने पहचाना है, आप भी पहचान सकते हैं। सह-अस्तित्व-वादी विचार में आप पारंगत हो सकते हैं। मैं सह-अस्तित्व-वादी विचार के अनुरूप जिया हूँ, जीता हूँ, आप भी जी सकते हैं।
सत्य समझ में आने पर पता चलता है - "सह-अस्तित्व स्वरूपी सत्य से मुक्त कोई वस्तु है ही नहीं!"
- जीवन विद्या राष्ट्रीय सम्मलेन २००६, कानपुर में बाबा श्री नागराज शर्मा के उदबोधन पर आधारित
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