सच्चाई को स्वीकारने में पुण्य-शील व्यक्ति देर नहीं लगाते। सच्चाई को स्वीकारने में पुण्य-शीलता का प्रभाव रहता है। क्या पुण्य-शीलता है? अच्छा करने की इच्छा पुण्य-शीलता है। दूसरे, जिसको अच्छा परम्परा में माना गया है उसको बनाए रखना, और जिसको बुरा माना गया है उससे दूर रहना। ये दोनों रहने से हम पुण्य-शील कहलाये।
पुण्य-शीलता के साथ अध्ययन को जोड़ने पर हम में सच्चाइयाँ स्वीकार होती हैं। समझदारी करतलगत होती है।
- जीवन विद्या राष्ट्रीय सम्मलेन २००६, कानपुर में बाबा श्री नागराज शर्मा के उदबोधन पर आधारित
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