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Saturday, June 6, 2009

आगे की पीढी आगे

हर मानव-संतान में कल्पनाशीलता और कर्म-स्वतंत्रता जीवित रहता है। हम अपने बच्चे को कुछ भी समझायें, सिखाएं, करायें - उसके बाद भी उसमें यह कल्पनाशीलता कर्म-स्वतंत्रता जिन्दा रहता है। गणितीय विधि से इसे सोचें - जैसे, मैंने आपको कुछ समझाया, उसके बाद आपका कल्पनाशीलता कर्म-स्वतंत्रता आपके पास सुरक्षित है, उसको आप जोड़ते हैं तो आप मुझसे आगे हो ही गए! यही आधार है - आगे की पीढी हमसे आगे ही होगी! आगे की पीढी के हमसे और अच्छा होने की नियति-सहज व्यवस्था बना हुआ है।

मैं अनुसन्धान पूर्वक अपने-पराये से मुक्त हुआ, भय-मुक्त हुआ, और समाधान-समृद्धि पूर्वक जीना सिद्ध कर पाया। वह ज्ञान आपमें प्रवेश होता है, आप उसको पूरा स्वीकार लिए - उसके बाद आप अपना कल्पनाशीलता कर्म-स्वतंत्रता उसमें जोड़ते हैं, तो आप मुझसे अच्छा जी ही सकते हैं, मुझसे अच्छा दूसरों का उपकार कर ही सकते हैं। अभी मैं न्यूनतम स्वरूप में उपकार कर रहा हूँ। इस तरह आगे-आगे पीढियों का मुझसे अच्छा जीने, मुझसे अच्छा उपकार करने का रास्ता खुल गया।

समझदारी के बाद ही उपकार करने की योग्यता आती है। यह तो पहले हम बात कर चुके हैं। समझदारी से पहले कोई उपकार कर नहीं पायेगा।

- जीवन विद्या राष्ट्रीय सम्मलेन २००६, कानपुर में बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित।

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