स्वराज्य का मतलब है - स्वयं का वैभव। राज्य का मतलब है - वैभव। हर मनुष्य का वैभव जब व्यवस्था के रूप में प्रकट होता है - वही स्वराज्य है। हर व्यक्ति का वैभव जब स्वत्व (समझदारी) और स्वतंत्रता के रूप में होता है - तभी स्वराज्य है। नियम, नियंत्रण, संतुलन, न्याय, धर्म, और सत्य - ये ६ स्तर का काम है। कम से कम न्याय पूर्वक जीने में मनुष्य का वैभव है। न्याय पूर्वक जीने में नियम, नियंत्रण, संतुलन पूर्वक जीना समाहित रहता है। संज्ञानीयता पूर्वक संवेदनाएं अपने आप से नियंत्रित रहते हैं।
अभी तक माना गया था - राजा के अनुसार चलने से स्वराज्य होता है। "राजा गलती नहीं करता" - यहाँ से शुरू किए। राजा को अय्याश के रूप में लोग देखे - तो लोग उसको नकार दिए। फ़िर गुरु के अनुसार चलने से स्वराज्य होता है - माना गया। गुरु को स्वयं प्रमाण स्वरूप में न पा कर लोग उसको भी नकार दिए। उसके बाद - सभा के अनुसार चलने से स्वराज्य होता है, यह माना गया। सभा में सभी प्रकार के अपराधों को वैध मानने के कार्यक्रमों में लोग लगे हैं। ये तीन लहरें तो गुजर चुकी। इन तीन प्रकार से मनुष्य ने अपने को अर्पित करके देख लिया - पर उससे स्वराज्य मिला नहीं। हर व्यक्ति का वैभव दिखा नहीं।
प्रश्न: राजा से हुआ नहीं, गुरु से हुआ नहीं, सभा से हो नहीं पा रहा है - फ़िर स्वराज्य कैसे होगा?
उत्तर: परिवार से होगा। परिवार में सभी समझदार हों, परस्परता में संबंधों को पहचानते हों, मूल्यों का निर्वाह करते हों, मूल्यांकन करते हों, उभय-तृप्ति पाते हों - इस प्रकार न्याय पूर्वक रहते हों। जब तक परिवार-जन मूल्यों को प्रमाणित नहीं करते, तब तक वे एक छत के नीचे "रह" सकते हैं पर "जी" रहे हैं - यह प्रमाणित नहीं होता। साथ में रहने मात्र से स्वराज्य प्रमाणित नहीं होता। "जीने" में ज्ञान ही आधार है, मूल्य ही आधार है, समाधान ही आधार है - और कोई आधार नहीं है। ज्ञान-आधार पर परिवार होने पर परिवार-जन परस्पर सहमति से कार्य करते हैं, परस्पर सहमति से प्रतिफल पाते हैं, परस्पर-सहमति से उपयोग करते हैं। इस तरह सह-अस्तित्व विधि से हम अच्छी तरह जी पाते हैं। इस तरह सह-अस्तित्व पूर्वक जी पाने पर मानव के स्वराज्य की शुरुआत हुआ। १० समझदार व्यक्तियों से गठित परिवार स्वराज्य का प्रथम सोपान समाधान-सम्रिध्ही पूर्वक जी कर प्रमाणित करता है। ऐसे १० परिवार मिल कर परिवार-समूह स्वराज्य-व्यवस्था को प्रमाणित करते हैं। इस तरीके से १० सोपान तक चल कर हम विश्व-परिवार व्यवस्था तक पहुँच जाते हैं। इसी का नाम है - "परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था"।
- जीवन विद्या राष्ट्रीय सम्मलेन २००६, कानपुर में बाबा श्री नागराज शर्मा के उदबोधन पर आधारित
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