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Wednesday, June 17, 2009

समझदारी की तीन धाराएं

सह-अस्तित्व स्वरूपी अस्तित्व को समझना, जीवन को समझना, और मानवीयता पूर्ण आचरण को समझना - इस तरह समझदारी की तीन धाराओं को मैं पहचाना हूँ। मैं इनको पूर्णतया समझा हूँ, पारंगत हूँ, जिया हूँ, जीता हूँ, आपको समझा सकता हूँ। ये तीनो धाराएं स्वयं में एकत्र होने पर समझदारी के प्रति हमारी तृप्ति होना बन जाती है। समझदारी के अनुरूप सोच-विचार, योजना, कार्य-योजना, फल-परिणाम निरंतर बना रहता है - अर्थात समाधान निरंतर बना रहता है। इसलिए मैं तृप्त रहता हूँ। मेरा विश्वास है आप सभी तृप्त होने के अर्थ में ही हैं। कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जो तृप्त नहीं होना चाहता हो। सर्व-मानव आबाल-वृद्ध तृप्त होना ही चाहते हैं।

समझदार हुए बिना मनुष्य को तृप्ति नहीं है।

समझदार आदमी गलती नहीं करता। गलती करता है तो समझदार नहीं है। समझा नहीं है, इसी लिए गलती किया - यहाँ पहुँचते हैं। उनको समझाने की अर्हता समझे हुए व्यक्ति में रहता ही है। गलती का सुधार ही "दंड" है। दंड का मतलब है - सुधार। दंड का मतलब यंत्रणा नहीं है। मेरा विश्वास है यह सदबुद्धि हरेक व्यक्ति में उपज सकता है। यदि ऐसा सदबुद्धि सबमें उपज जाए, तो धरती पर संकट कहाँ है? सदा-सदा समाधान ही रहेगा। यह मैं आपको भरोसा दिलाना चाहता हूँ। अभी भरोसा दिलाना ही बनता है। आपके-हमारे अथक प्रयास से इस प्रस्ताव को शिक्षा-विधा में और व्यवस्था-विधा में प्रकट करना आवश्यक है। व्यवस्था और शिक्षा में यह प्रस्ताव आए बिना यह सर्व-सुलभ होगा, ऐसा मैं नहीं मानता।

अभी परंपरागत शिक्षा में सह-अस्तित्व स्वरूपी सत्य को समझाने की कोई गुंजाइश नहीं है। इस शिक्षा में जीवन को समझाने का कोई प्रावधान नहीं है। अभी की शिक्षा में शरीर को ही जीवन मानते हैं। जब तक शरीर संवेदनाओं को व्यक्त करता है, उसको जीवन मानते हैं। जब शरीर संवेदनाओं को व्यक्त नहीं करता है - उसको मृत्यु मानते हैं। इतना ही परम्परा में अभी तक ज्ञान है, इससे अधिक हुआ नहीं।

धरती पर ७०० करोड़ लोगों के पास सह-अस्तित्व वाद का यह प्रस्ताव शिक्षा-विधि से ही पहुंचेगा। शिक्षा के ढाँचे-खांचे में इस वस्तु को बहाने की आवश्यकता है। मैं सामान्य व्यक्ति हूँ, इस बात को मैंने अपने ढंग से प्रस्तुत किया है। इसको आप और अच्छे ढंग से प्रस्तुत करेंगे - ऐसा मेरा विश्वास बना हुआ है।

- जीवन विद्या राष्ट्रीय सम्मलेन २००६, कानपुर में बाबा श्री नागराज शर्मा के उदबोधन पर आधारित

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