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Wednesday, June 3, 2009

वर्तमान को समझना

वर्तमान को समझना है। अस्तित्व (जो कुछ भी है) नित्य वर्तमान है। स्थूल रूप में हम अस्तित्व को पहचानते हैं। जैसे यह धरती निरंतर बनी है - यह स्थूल ज्ञान है। सूक्ष्म रूप - अर्थात वैचारिक रूप में हम अस्तित्व को पहचानते हैं। वैचारिक रूप में अस्तित्व "नियम", "नियंत्रण", "संतुलन", "न्याय", "धर्म", और "सत्य" के रूप में पहचान में आता है। उससे भी गहन - कारण स्वरूप में अस्तित्व "होने" और "रहने" के रूप में समझ आता है। वह होता है - सह-अस्तित्व दर्शन ज्ञान। यह अनुभव-मूलक विधि से ही होता है। यह मुख्य बात है।

मनुष्य ने चार विषयों और पाँच संवेदनाओं के ज्ञान के साथ जी कर देख लिया। उसके बाद भी कुछ समझना शेष बचा रहा। मनुष्य वैचारिक स्तर पर बहुत सोचा है। व्यवहारिक स्तर पर कुछ किया है, कुछ करना शेष भी है। किंतु ज्ञान स्वरूप में अस्तित्व को जो पहचाना है, समझा है, जिया है - ऐसे सत्यापन के साथ जिए हुए व्यक्ति धरती पर बिरले ही होंगे। इस तरह सत्यापित करने वाले आदमी को मैं अभी तक पहचाना नहीं हूँ। मैं यहाँ आप को सत्यापित करके बता रहा हूँ - मैं इन मुद्दों को समझा हूँ, जिया हूँ। यदि आप मेरे इस सत्यापन पर यकीन कर सकते हैं, तो आप मुझसे सह-अस्तित्व स्वरूपी अस्तित्व को समझ सकते हैं। यदि आप यकीन नहीं कर सकते तो यह समझने का रास्ता आप अपने लिए बंद कर लेते हैं।स्थूल रूप में आज भी स्कूलों में विद्यार्थी अपने अध्यापकों को सही मान कर ही उनसे पढ़ते हैं। जिस दिन उन्होंने अध्यापक को ग़लत मान लिया, उसी तिथि से उनका अध्यापक से सीनाजोरी शुरू हो जाता है। आप और मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही धर्म-संकट है! कुछ बात को आप मान कर चलते हैं, और उसका जीने में परीक्षण करते हैं। वह परीक्षण में सही उतरता है, तो सम्मान बचता है। सही नहीं उतरता तो सम्मान बचता नहीं है! इतना ही बात है। यह सबके रहते आप यहाँ जो जिज्ञासु - ज्ञानी, विज्ञानी बैठे हैं, साथ में कुछ अज्ञानी भी बैठे होंगे - उनसे मेरा यह विनय है। यदि आप ठीक से समझना चाहते हैं तो आप सब के पास वह माद्दा है। हर मनुष्य में कल्पनाशीलता है, जिसके सहारे वह समझदार हो सकता है। सह-अस्तित्व नित्य वर्तमान है। इसको समझने वाला केवल मनुष्य ही है। दूसरा कोई नहीं है।

- जीवन विद्या राष्ट्रीय सम्मलेन २००६ - कानपुर में बाबा श्री नागराज शर्मा के उदबोधन पर आधारित

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