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Wednesday, November 29, 2017

सम्बन्ध में प्रयोजन की पहचान



- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद - अगस्त २००६, अमरकंटक

Tuesday, November 28, 2017

परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था पर संवाद



- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद - अगस्त २००६, अमरकंटक

Monday, November 27, 2017

स्वभाव गति में ही अध्ययन हो सकता है



- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद - अगस्त २००६, अमरकंटक

Sunday, November 26, 2017

मंगल मैत्री पूर्वक ही प्रबोधन सफल होता है.



- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद - अगस्त २००६, अमरकंटक

Thursday, November 23, 2017

संस्कृति, उत्सव, उन्मुक्तता और वैविध्यता



चित्रकला, मूर्तिकला, संगीत और काव्य-साहित्य - इन चारों को मिलाकर हम "कला" मानते हैं जो अभी संस्कृति का स्वरूप मानते है.  इसके साथ त्यौहार मनाना, उत्सव मनाना, नाचना, गाना, बाजा बजाना - इसको संस्कृति का क्रिया स्वरूप मानते हैं.  उसी के साथ शादी-ब्याह के रीति-रिवाजों का निर्वाह करना, और वहाँ उत्सव मनाने के तरीकों को प्रस्तुत करना को संस्कृति मानते हैं.

यहाँ संस्कृति की परिभाषा दिया - "पूर्णता के अर्थ में किया गया कृतियाँ".  पूर्णता के अर्थ में क्या करेंगे - इसके लिए विकल्प दिया.

जैसे - जब कोई संतान जन्मता है तो उस समय उत्सव में यह कामना व्यक्त किया, यह संतान जो आया है वह मानव चेतना से संपन्न हो, विद्वान हो, तकनीकी शिक्षण से उत्पादन करने में सक्षम बने.  ऐसे गीतों को तैयार करना.  ऐसे गीतों का गायन, ऐसा बाजा-भजन्तरी, नाच-गाना सब कर लो!

एक गाँव में अनेक उत्सवों को पहचाना जा सकता है.  जैसे - ऋतुकाल उत्सव को हर ऋतु - जैसे बसंत, शिशिर, ग्रीष्म - के साथ मनाया जा सकता है.  ऐसे साल में ६ उत्सव!  हर व्यक्ति के साथ जन्मोत्सव, शिक्षा में स्नातकोत्सव (उस दिन को याद करने के लिए जब स्नातक हुए थे!), विवाहोत्सव.  ये हरेक व्यक्ति के साथ है.  गाँव में १०० परिवार हों तो कितने उत्सव हो जायेंगे!  उसके बाद कृषि से सम्बंधित उत्सव!  व्यवस्था से सम्बंधित उत्सव!  व्यवस्था की पाँचों समितियों के पांच उत्सव.  वर्ष में एक दिन ग्राम स्वराज्य सभा का उत्सव!  एक वर्ष में हम क्या-क्या कर पाए, आगे क्या करने की तैयारी है - इसको पूरे गाँव के सामने रखना.  सफलता जो हुआ उसके आधार पर कविता, निबंध, प्रबंध, गाना, बाजा, भजन्तरी, नाच-गाना - सब कर लेना!

जैसे न्याय-सुरक्षा समिति के उत्सव में हमारे गाँव में पूरे वर्ष न्याय-सुरक्षा को लेकर क्या-क्या किये, १०० परिवारों में से सबकी आराम और तकलीफों का बखान.  हर परिवार अपना अपना सत्यापन करे - हमारे परिवार में सभी परिवार जनों द्वारा न्याय-सुरक्षा सटीक निर्वाह हुआ या नहीं हुआ?  मूल्य-चरित्र-नैतिकता विधि से, और उपयोग-सदुपयोग-प्रयोजनशीलता विधि से.  उसको डॉक्यूमेंट किया जाए.

वस्तुओं और सेवा का परिवार में "उपयोग" होता है, अखंड समाज में "सदुपयोग" होता है, और सार्वभौम व्यवस्था में "प्रयोजनशील" होता है.  वस्तु और सेवा कौन अर्पित करेगा?  जो समृद्ध परिवार हैं, वे अर्पित करेंगे.  गाँव के सभी १०० परिवार समृद्ध हैं.  उसी तरह समृद्ध परिवारों के बीच विनिमय-कोष व्यवस्था का उत्सव.  हर परिवार ने क्या किया - इस पर निबंध, प्रबंध.  श्रम मूल्य को कैसे पहचाना - इसका डॉक्यूमेंटेशन.  साथ में गायन, बाजा, भजन्तरी!

इसमें थोडा मखौल भी है, सुखद भी है - पर यथार्थ पूरा है!  मखौल से आशय है - गंभीरता के स्थान पर हल्के-फुल्के तरीके से बात किया, पर भाव फिर भी पूरा आ गया!  अब आप बताओ - यह सब हुल्लड़बाजी, हल्ला-दंगा पूर्णता के अर्थ में है या नहीं!?

मानव को कहीं न कहीं उन्मुक्तता भी चाहिए.  यह उन्मुक्तता अखंडता और सार्वभौमता के साथ जुड़ा रहे.  हंसी-खेल बिना पूर्वाग्रह के है तो उन्मुक्तता है.  पूर्वाग्रह के साथ तो हंसी-खेल भी प्रतिस्पर्धा है.

खेल एक दूसरे को प्रसन्नता देने के लिए है, स्वस्थ रहने के लिए है.  स्वस्थ रहना व्यक्ति, परिवार और गाँव के लिए प्रसन्नता है.  स्वस्थ और प्रसन्न रहने पर हम ज्यादा उपयोगी हो सकते हैं.

आशय एक ही रहते हुए, लक्ष्य एक ही रहते हुए - हर मनुष्य के समझने का और अपनी समझ को व्यक्त करने का तरीका भिन्न होगा.  तरीका बदलना स्वाभाविक है, क्योंकि मानव यंत्र नहीं है!

एक तरफ समझ और दूसरी तरफ व्यवस्था में जीने का प्रमाण - इन दोनों के बीच में हमारी वैविध्यता है.  समझने-समझाने में, सीखने-सिखाने में, करने-कराने में!  अध्ययन से लेकर अध्यापन तक, व्यवहार से लेकर व्यवस्था तक, कृषि से लेकर उद्योग तक - हर जगह में सीखना-सिखाना, करना-कराना, समझना-समझाना बना रहेगा.

समझाने में परिपूर्णता और जिज्ञासा में परिपूर्णता दोनों आवश्यक है.  कैसे समझायेंगे - इसमें वैविध्यता रहेगी.  अपनी मौलिकता के अनुसार आप समझायेंगे.  कैसे भी समझाया, समझा दिया - उसका मूल्यांकन है.  किस तरीके से समझाया, उसका मूल्यांकन नहीं है!

- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद - अगस्त २००६, अमरकंटक

Tuesday, November 21, 2017

Monday, November 20, 2017

सूक्ष्म संवेदना



(जागृति पूर्वक) सतर्कता-सजगता विधि से हम सदा-सदा तीन दिशाओं के दृष्टा बने रहते हैं.  जैसे - हम किसी सामने खड़े व्यक्ति को देखते हैं तो वह व्यक्ति कैसा दिख रहा है, वह क्या कर रहा है, और वह क्या सोच रहा है - इन तीनो संवेदनाओं को हम ग्रहण करते हैं.  सामने व्यक्ति क्या सोच रहा है उसको पहचानना भी संवेदना ही है - जिसको "सूक्ष्म संवेदना" नाम दिया.  इसको भी हम शरीर के साथ ही ग्रहण करते हैं. 

विचार जीवन में होते हैं.  जीवन के साथ ही शरीर में संवेदनाएं अनुप्राणित होती हैं.  सूक्ष्म संवेदना (सामने व्यक्ति का विचार) यदि समझ में आता है तो हम सामने व्यक्ति को समझे, अन्यथा हम सामने व्यक्ति को समझे नहीं.  "सोचना" या विचार ही "दिखने" और "करने" के मूल में होता है. 

यदि हम सामने व्यक्ति के विचार को उसके दिखने और उसके करने से मिला पाते हैं तो हम उसको समझे, अन्यथा हम सामने व्यक्ति को समझे नहीं!

इस तरह संवेदना विधि से मनुष्य का मनुष्य से अध्ययन का स्त्रोत बना है.  हर मनुष्य का अध्ययन हर मनुष्य कर सकता है. 

जो दिख रहा है - वह "गणित", जो कर रहा है - वह "गुण", जो है - वह "कारण".  इस तरह कारण-गुण-गणित के संयुक्त स्वरूप में मानव द्वारा हर वस्तु की पहचान और सम्प्रेश्ना होती है.  मानव से जुड़ा यह एक सिद्धांत है.

इसी विधि से मानवों में एक दूसरे के साथ मंगल मैत्री के निर्वाह की आवश्यकता की आपूर्ति है.  मंगल मैत्री आवश्यक है - क्योंकि हमे व्यवस्था में जीना है!  व्यवस्था में जिए बिना मानव का कल्याण नहीं है.  सर्वमानव का कल्याण व्यवस्था में जीने में ही है. 

सर्वमानव के कल्याण (शुभ) का स्वरूप है - समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व प्रमाण.  इसके लिए अखंड समाज सूत्र-व्याख्या, अखंड राष्ट्र सूत्र-व्याख्या, सार्वभौम व्यवस्था सूत्र-व्याख्या - यही शिक्षा की वस्तु है. 

- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित - अगस्त २००६, अमरकंटक

Sunday, November 19, 2017

विकल्प की चर्चा



- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद, अगस्त २००६, अमरकंटक 

यह व्यवस्था के लिए विकल्प है! व्यवस्था के लिए यही विकल्प है!!



- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद, अगस्त २००६, अमरकंटक 

यह विकल्प है! यही विकल्प है!! - भाग ३




- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद, अगस्त २००६, अमरकंटक 

Saturday, November 18, 2017

यह विकल्प है! यही विकल्प है!! - भाग २




- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद, अगस्त २००६, अमरकंटक 

यह विकल्प है! यही विकल्प है!! - भाग १




- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद, अगस्त २००६, अमरकंटक 

Friday, November 17, 2017

जीवन शक्तियों में अपेक्षाकृत अधिक गति और पैनापन

आशा गति से विचार गति, विचार गति से इच्छा गति, इच्छा गति से संकल्प गति, संकल्प गति से प्रमाण गति ज्यादा होती है.

आशा से ज्यादा पैनापन विचार में, विचार से ज्यादा पैनापन इच्छा में, इच्छा से ज्यादा पैनापन संकल्प में, संकल्प से ज्यादा पैनापन प्रमाण में होता है.

इसी अपेक्षाकृत अधिक गति और पैनेपन के आधार पर ही एक दूसरे के साथ मूल्यांकन और तदाकार होना संभव है.

- श्रद्धेय ए. नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६, अमरकंटक)

"यह खाली नहीं है, ऊर्जा है!"