ANNOUNCEMENTS



Wednesday, June 17, 2009

समझदारी के बाद स्वतंत्रता है

"स्वतंत्रता" शब्द से भास् होता है - मनुष्य ऐसा भी कर सकता है, तैसा भी कर सकता है। इस तरह मनमानी करने को स्वतंत्रता मान लिया गया है।

प्रश्न: स्वतंत्रता वास्तव में क्या है?

उत्तर: समझदारी के बाद उत्तरोत्तर और अच्छा करने के बारे में ही सोचना ही स्वतंत्रता है। उत्तरोत्तर और अच्छा सोचने की जो हमारी ताकत है, वही स्वतंत्रता है। यह उपकार के साथ जुडी रहती है। इस तरह अच्छे से, और अच्छा, और अच्छे से और ज्यादा अच्छा चलने की जो गति है - उसको हम कहते हैं "अभ्युदय"। अभ्युदय का तात्विक अर्थ है - सर्वतोमुखी समाधान। स्वतंत्रता का वैभव अभ्युदय में है।

हमारे देश में १९४७ में जो राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्त हुई थी, उसने कहाँ पहुँचा दिया? हर गलती करने में स्वतन्त्र! सभी को गलती करने की स्वतंत्रता प्राप्त हुई। सभी व्यक्ति अपराधी होने पर समाज का क्या होगा? इससे आदमी दुःख, कठिनाइयाँ जो भोगेगा, उसे फ़िर भी सह लो - पर धरती जो बीमार हो गयी, तो आगे पीढी कहाँ रहेगा? हमने तो मजा मार लिया, आगे पीढी के लिए वीरानी छोड़ कर! इस अभिशाप के तो हम योग्य हो ही चुके हैं। मनुष्य के कृत्यों के आधार पर ही यह धरती बीमार हुई है।

कृत-कारित-अनुमोदित भेदों से हर व्यक्ति धरती के साथ होने वाले अपराधों से जुड़ा ही है। राज्य में रहने वाला हर व्यक्ति राजनैतिक-अपराध से जुड़ा ही है। धर्म-नैतिक अपराध - उस समुदाय से जुड़ा हर आदमी उस में भागीदार है ही। आर्थिक अपराध - उस संस्थान का हर आदमी उससे जुड़ा ही है। इस धरती का बीमार होना इस धरती पर रहने वाले ७०० करोड़ आदमियों के अपराध का फलन है।

यही ७०० करोड़ आदमी अपराध-मुक्त होने पर यह धरती अपने आप में संभल सकता है। ऐसा मेरा विश्वास है। इसी आधार पर आपके सम्मुख मैं प्रस्तुत हो रहा हूँ। कहाँ तक आप समझ पायेंगे, सार्थक हो पायेंगे, उपकार कर पायेंगे - यह आपके संकल्प पर ही निर्भर है। "आप यही करिए!!" - मैं आपको ऐसा नहीं कहता हूँ। समझने का अधिकार आपके पास है। अपनी समझी हुई बात को मैं आपके सम्मुख अनुनय-विनय ही करूंगा। यदि यह आपको स्वीकार होता है तो आप स्वयं तौलिये, ऐसे जीना है कि नहीं? समझदारी पूर्वक जीने की आपकी इच्छा होता है तो आप प्रमाणित होंगे ही! प्रमाणित होने के क्रम में आप भी उपकार ही करेंगे।

- जीवन विद्या राष्ट्रीय सम्मलेन २००६, कानपुर में बाबा श्री नागराज शर्मा के उदबोधन पर आधारित

No comments: