"स्वत्व", "स्वतंत्रता", और "स्वराज्य" - ये तीन शब्द हम हमारे देश में बड़े समय से सुनते आए हैं। पर ये वास्तविकता में हैं क्या - यह समझ में किसी के भूंजी-भांग नहीं आया! हमारे देश में ६० वर्ष पहले स्वतंत्रता की बात सार्थक हुई, माना गया था। किंतु आज जब मैं ८७ वर्ष में चल रहा हूँ, मुझे समझ नहीं आता हम १९४७ में क्या स्वतंत्रता पाये? क्या स्वराज्य पाये? क्या स्वत्व के रूप में मिला? आपको यदि समझ में आता हो तो मुझे समझाइये! यदि आपको भी यह समझ में नहीं आता हो, तो मैं जो अनुसंधान किया हूँ, सह-अस्तित्व को देखा हूँ, सह-अस्तित्व में जिया हूँ, जिससे मुझे स्वत्व, स्वतंत्रता, और स्वराज्य का अर्थ समझ में आया - उसको आप परिशीलन करके देखिये। सह-अस्तित्व के बारे में मेरा विश्वास सोलह आना है। इसी आधार पर मैं यह कामना करता हूँ - आप में भी सह-अस्तित्व के प्रति पूर्ण विश्वास हो। आप में ऐसी अर्हता आए जिससे आप स्वत्व को भी समझ सकते हैं, स्वतंत्रता को भी समझ सकते हैं, स्वराज्य को भी समझ सकते हैं। यह आप के ऊपर कोई आरोपण नहीं है। आपकी इच्छा हो तो आप इसको समझ सकते हैं।
सह-अस्तित्व समझ में आए बिना न स्वत्व समझ में आएगा, न स्वतंत्रता समझ में आएगा, और स्वराज्य समझ में आना तो दूर की बात है।
अभी परंपरागत शिक्षा में सह-अस्तित्व स्वरूपी सत्य को समझाने की कोई गुंजाइश नहीं है। इस शिक्षा में जीवन को समझाने का कोई प्रावधान नहीं है। अभी की शिक्षा में शरीर को ही जीवन मानते हैं। जब तक शरीर संवेदनाओं को व्यक्त करता है, उसको जीवन मानते हैं। जब शरीर संवेदनाओं को व्यक्त नहीं करता है - उसको मृत्यु मानते हैं। इतना ही परम्परा में अभी तक ज्ञान है, इससे अधिक हुआ नहीं। सह-अस्तित्व स्वरूपी अस्तित्व के ज्ञान को मैं पूर्णतया समझा हूँ, मैं पारंगत हूँ, आपको समझा सकता हूँ।
- जीवन विद्या राष्ट्रीय सम्मलेन २००६, कानपुर में बाबा श्री नागराज शर्मा के उदबोधन पर आधारित
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