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Saturday, July 26, 2008

प्रमाण और जिज्ञासा के संयोग में अध्ययन होता है.

अनुभव मूलक विधि से जिए बिना कोई अध्ययन करवा नहीं सकता। अध्ययन प्रमाण और जिज्ञासा के संयोग में होता है। प्रमाण जीने में ही होता है। प्रमाण का स्वरुप है - समाधान और समृद्धि पूर्वक जीना।

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित

1 comment:

Anonymous said...

....जीवन विद्या की सभी रचनाएँ एक से बढ़कर एक है.... समर्पित रहिये.... हमें आपके इस विद्या की अत्यन्त आवश्यकता है......