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Sunday, July 6, 2008

क्यों और कैसे का उत्तर

समाधान = क्यों और कैसे का उत्तर

अस्तित्व ही समझने की वस्तु है। हर वस्तु क्यों है, और कैसे है - यह समझ में आ जाना ही समाधान है। मनुष्य ही समझने वाली ईकाई है।

हर वस्तु प्रकाशमान है। इसका मतलब हर वस्तु अपने आप को व्यक्त करती है। यह व्यक्त करने का स्वरुप है - रूप, गुण, स्व-भाव, और धर्म। इन चारों dimensions को मिला कर वस्तु की पूरी व्याख्या सम्भव है।

रूप और गुण मनुष्य को इन्द्रियों से भी समझ में आते हैं। इन्ही के आधार पर मनुष्य ने बाकी तीनो अवस्थाओं की वस्तुओं का उपयोग किया। किंतु स्व-भाव और धर्म समझ में नहीं आने के कारण - मानव का इन अवस्थाओं के साथ पूरक होना, या उपकारी होना नहीं बन पाया। यहीं कमी रह गया। इसीसे imbalance हुआ। प्रकृति ने मानव को तभी project किया, जब बाकी तीनो अवस्थाओं के द्वारा परिस्थितियां मानव के अनुकूल बन गयी थी। मानव से धरती की जो आवश्यकता थी, उसका मानव ने निर्वाह नहीं किया। जिससे धरती स्वयं बीमार हो कर मानव को बता दी। अब मानव को धरती पर रहना है - तो उसको स्व-भाव और धर्म को समझना ही पड़ेगा।

किसी भी ईकाई का स्व-भाव उसके सह-अस्तित्व सहज प्रयोजन को स्पष्ट करता है। कोई भी ईकाई अस्तित्व में "क्यों" है? - इस प्रश्न का उत्तर उसके स्व-भाव को पहचानने से मिलता है। स्व-भाव ही वस्तु का मूल्य है - या मौलिकता है। जब मनुष्य किसी ईकाई के स्व-भाव को पहचान लेता है - तब उसके साथ कैसे निर्वाह करना है, यह उसको स्पष्ट हो जाता है।

किसी भी ईकाई का धर्म उसके "होने" को स्पष्ट करता है। कोई भी ईकाई अस्तित्व में "कैसे" है? - इस प्रश्न का उत्तर उसके धर्म को पहचानने से मिलता है। सह-अस्तित्व में प्रकटन विधि है। इसी प्रकटन क्रम में चारों अवस्थाएं क्रम से प्रकट हुई हैं। धर्म शाश्वतीयता के अर्थ में है। धर्म को प्रमाणित करने के अर्थ में स्व-भाव है।

अस्तित्व में सभी इकाइयों के "होने" की गवाही मानव ही देता है। मानव ही दृष्टा है। "होने" का ही दर्शन है। "होने" को समझने के बाद ही मानव जागृति को "रहने" के रूप में चारों अवस्थाओं के साथ प्रमाणित करता है।

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (जून २००८, बंगलोर)

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