अस्तित्व में तीन तरह की क्रियाएं हैं - (१) भौतिक क्रिया , (२) रासायनिक क्रिया, (३) जीवन क्रिया। इनके अलावा कोई चौथी प्रकार की क्रिया अस्तित्व में नहीं है। इन तीनो क्रियाओं के योग-संयोग से अस्तित्व में चार अवस्थाओं का प्रकटन हुआ। मानव ज्ञान-अवस्था में गण्य हुआ। क्योंकि इसी अवस्था में जीवन के जागृत होने की व्यवस्था है। इसका कारण है - मानव शरीर रचना इस प्रकार से हुआ कि उससे जीवन अपनी कल्पनाशीलता और कर्म-स्वतंत्रता को प्रकाशित कर सकता है।
मानव की मध्यस्थता तभी प्रमाणित हो सकती है - जब वह अपने कल्पनाशीलता और कर्म-स्वतंत्रता के तृप्ति-बिन्दु को पहचान ले। कल्पनाशीलता का तृप्ति-बिन्दु ज्ञान में है। कर्म-स्वतंत्रता का तृप्ति-बिन्दु स्वयं-स्फूर्त विधि से स्वराज्य-व्यवस्था में भागीदारी करना है। स्वराज्य-व्यवस्था में भागीदारी करना कोई आरोपण नहीं है - "स्वयं स्फूर्त" है। ऐसा नहीं है - हम आपको दस रूपया दे दिया, तो आप व्यवस्था में भागीदारी करेंगे। यह स्वयं-स्फूर्त होना होगा। उसके लिए समझदारी स्वयं में ध्रुव होना अनिवार्य है।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (जून २००८, बंगलोर)
मानव की मध्यस्थता तभी प्रमाणित हो सकती है - जब वह अपने कल्पनाशीलता और कर्म-स्वतंत्रता के तृप्ति-बिन्दु को पहचान ले। कल्पनाशीलता का तृप्ति-बिन्दु ज्ञान में है। कर्म-स्वतंत्रता का तृप्ति-बिन्दु स्वयं-स्फूर्त विधि से स्वराज्य-व्यवस्था में भागीदारी करना है। स्वराज्य-व्यवस्था में भागीदारी करना कोई आरोपण नहीं है - "स्वयं स्फूर्त" है। ऐसा नहीं है - हम आपको दस रूपया दे दिया, तो आप व्यवस्था में भागीदारी करेंगे। यह स्वयं-स्फूर्त होना होगा। उसके लिए समझदारी स्वयं में ध्रुव होना अनिवार्य है।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (जून २००८, बंगलोर)
1 comment:
bhut sahi or bhut achha likha hai. jari rhe.
Post a Comment