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Friday, July 4, 2008

जिज्ञासा, पात्रता, और अभिव्यक्ति

जितना तुम जिज्ञासा करते हो, उतने को ले जाने की धारक-वाहकता (पात्रता) तुम्हारे पास रहता है। जब तुमको उसका उत्तर मिल जाता है - तो वह तुम्हारे व्यवहार में प्रमाणित होने की श्रृंख्ला बन जाती है।

जिज्ञासा पात्रता का एक अनुमान है। पात्रता है - तभी जिज्ञासा करते हो।  जिज्ञासा के अनुरूप समझने के बाद ही आपकी पात्रता प्रमाणित होती है। यह बात हर व्यक्ति के साथ है। जितना हम जिज्ञासा करते हैं - उसके उत्तर को लेकर चलने का अधिकार हम में बना रहता है।

जिज्ञासा कोई आवेश नहीं है। मौलिक जिज्ञासा आवेश नहीं हो पाती। आवेश के लिए कोई संघर्ष-बिन्दु चाहिए। जिज्ञासा के उत्तर में अभिव्यक्ति होती है - अनुभव संपन्न व्यक्ति के द्वारा। अभिव्यक्ति स्वयं-स्फूर्त होती है - आवेश दूसरे के कारण से होता है। आपकी जिज्ञासा का उत्तर करते हुए मुझ पर कोई दबाव या आवेश नहीं है। आवेश विधि से सच्चाई का पता नहीं लग पाता। हम सच्चाई के बिन्दु से slip हो जाते हैं।

जिज्ञासा और अभिव्यक्ति में आवेश नहीं होता। इसीलिये इनमें संगीतमयता होने की अपेक्षा रहती है। यह मंगल-मैत्री का अनुपम सूत्र है। यह मंगल-मैत्री का सूत्र दूर दूर तक फ़ैल जाता है।

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित। (अगस्त २००६)

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