अभी तक मनुष्य जैसे भी जिया - चाहे आर्थिक विधा में, चाहे धार्मिक विधा में, चाहे राजनीति विधा में - उससे जो जीने के मॉडल निकले - वे मध्यस्थ-दर्शन के प्रमाणित होने के लिए अनुकूल नहीं हैं। इसी लिए इसको "विकल्प" नाम दिया है। इसको जीने का मॉडल समाधान-समृद्धि है।
यह प्रस्ताव अपने में पूरा है। इसको समझने का अधिकार सबका समान है। समझदारी से समाधान होता है।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित, (जून २००८, बंगलोर)
No comments:
Post a Comment