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Monday, July 21, 2008

समाधान के बिना समृद्धि का कल्पना भी नहीं किया जा सकता

मध्यस्थ-दर्शन ने मानव-लक्ष्य को समाधान, समृद्धि, अभय, और सह-अस्तित्व के रूप में पहचाना है। हर मानव का यही लक्ष्य है। समाधान के लिए अध्ययन विधि प्रस्तावित की है।

समाधान, समृद्धि, अभय, और सहअस्तित्व क्रम से मानव द्वारा प्रमाणित होते हैं। सह-अस्तित्व पहले हो जाए, समाधान बाद में हो जाए यह हो नहीं सकता। समृद्धि पहले हो जाए - समाधान बाद में हो जाए यह हो नहीं सकता।

व्यक्ति के स्तर पर समाधान प्रमाणित होता है। समाधान प्रमाणित होने का मतलब है - हर क्यों और कैसे का उत्तर स्वयं में से निर्गमित होने लगना। अनुभव हो जाना = समझदारी = समाधान सम्पन्नता। समझदारी के लिए ध्यान देना होता है। अनुभव के बाद ध्यान बना ही रहता है।
परिवार के स्तर पर समृद्धि प्रमाणित होती है। आवश्यकताओं का ध्रुवीकरण परिवार में ही सम्भव है। निश्चित आवश्यकता के लिए कितना और कैसे उत्पादन करना है, यह निश्चित किया जा सकता है। अनिश्चित आवश्यकताओं के लिए उत्पादन कितना करना है, यह निश्चित नहीं हो पाता। समाधान के बिना समृद्धि की कल्पना भी नहीं की जा सकती। श्रम से समृद्धि होती है।
सम्पूर्ण मानव-जाति के स्तर पर अभय प्रमाणित होता है। जब तक सम्पूर्ण धरती पर सभी मानवीयता पूर्वक नहीं जीते - तब तक अभय प्रमाणित नहीं हुआ। मध्यस्थ-दर्शन के लोकव्यापीकरण का सूत्र है - समाधान और समृद्धि। समाधान-समृद्धि प्रमाण के बिना इस प्रस्ताव का लोकव्यापीकरण नहीं हो सकता। लोकव्यापीकरण शिक्षा विधि से होगा।
चारों अवस्थाओं के साथ सहअस्तित्व प्रमाणित होता है। चारों अवस्थाओं की निरंतरता "रहने" के रूप में प्रमाणित होना ही सहअस्तित्व प्रमाण है। इसके पहले मनुष्य को समाधान, समृद्धि, और अभय को प्रमाणित करना होगा।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (जून २००८, बंगलोर)

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