साधना, अभ्यास, समाधि, संयम विधि से मैंने मानव की कल्पनाशीलता और कर्म-स्वतंत्रता के तृप्ति-बिन्दु को पहचाना है।
दो स्थितियां हम अपने सामने देख सकते हैं :
(१) धरती का बीमार होना।
(२) व्यापार का शोषण-ग्रस्त होना (लाभ-उन्मादिता)
मानव के पास जो स्वत्व के रूप में जो कल्पनाशीलता और कर्म-स्वतंत्रता है - जब तक उसके तृप्ति-बिन्दु को हम नहीं पहचानेंगे, तब तक इन दोनों स्थितियों का दवाई नहीं बन सकता।
अभी हम factories में जो products तैयार करते हैं, उनको लाभ के आधार पर ही market में बेचते हैं। अभी तक भौतिकवादी विधि से यही माना गया - "केवल सक्षम व्यक्ति को ही जीने का अधिकार है।" अक्षम व्यक्ति को जीने का अधिकार नहीं है - ऐसा भौतिकवादी सोच से निकलता है। सक्षम और अक्षम को इस विधि से पहचानने गए तो यह निकला : ज्यादा पैसा = ज्यादा सक्षम। कम पैसा = अक्षम। इस ढंग से ज्यादा-कम वाला स्थिति बना ही रहेगा। इस तरह कितने लोगों को अक्षम कह कर मारा जाए, काटा जाए, अलग किया जाए, और कितने लोगों को धरती पर रहने दिया जाए? इस तरह की दुष्ट प्रवृत्ति बनती है। इसी प्रवृत्ति के आधार पर हर देश ने अपना border-security बनाया। इसके आधार पर ही धरती का शोषण हुआ - और धरती बीमार हो गयी। यह इसीलिये हुआ - क्योंकि कल्पनाशीलता और कर्म-स्वतंत्रता का तृप्ति-बिन्दु मानव-जाती को हाथ नहीं लगा। यह बात मानव परम्परा में नहीं है, अध्ययन में आज तक नहीं है, शिक्षा में आज तक नहीं है, संविधान में आज तक नहीं है, न ही व्यवस्था में है। कल्पनाशीलता और कर्म-स्वतंत्रता के तृप्ति-बिन्दु के प्रमाणित होने की गवाही इस धरती के किसी देश में आज तक नहीं है।
कल्पनाशीलता और कर्म-स्वतंत्रता के तृप्ति-बिन्दु को हमें identify करना होगा। उससे पहले मानव-जाती अपराध-प्रवृत्ति से मुक्त नहीं हो सकता। मानव के साथ किया हुआ अपराध भी अंततोगत्वा धरती के साथ ही जुड़ता है - सूक्ष्म विधि से सोचें तो हमको यह पता चलता है।
मध्यस्थ-दर्शन के अनुसंधान से निकला - सह-अस्तित्व में अनुभव ही मनुष्य की कल्पनाशीलता का तृप्ति बिन्दु है। जागृति को प्रमाणित करना ही कर्म-स्वतंत्रता का तृप्ति-बिन्दु है। सह-अस्तित्व में अध्ययन पूर्वक इस तृप्ति-बिन्दु तक पहुँचा जा सकता है। इसके अलावा इस तृप्ति-बिन्दु तक पहुँचने का और कोई रास्ता नहीं है। इस तरह कल्पनाशीलता और कर्म-स्वतंत्रता के तृप्ति-बिन्दु को पहचानने का प्रमाण है - अपराध-मुक्ति।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६)
दो स्थितियां हम अपने सामने देख सकते हैं :
(१) धरती का बीमार होना।
(२) व्यापार का शोषण-ग्रस्त होना (लाभ-उन्मादिता)
मानव के पास जो स्वत्व के रूप में जो कल्पनाशीलता और कर्म-स्वतंत्रता है - जब तक उसके तृप्ति-बिन्दु को हम नहीं पहचानेंगे, तब तक इन दोनों स्थितियों का दवाई नहीं बन सकता।
अभी हम factories में जो products तैयार करते हैं, उनको लाभ के आधार पर ही market में बेचते हैं। अभी तक भौतिकवादी विधि से यही माना गया - "केवल सक्षम व्यक्ति को ही जीने का अधिकार है।" अक्षम व्यक्ति को जीने का अधिकार नहीं है - ऐसा भौतिकवादी सोच से निकलता है। सक्षम और अक्षम को इस विधि से पहचानने गए तो यह निकला : ज्यादा पैसा = ज्यादा सक्षम। कम पैसा = अक्षम। इस ढंग से ज्यादा-कम वाला स्थिति बना ही रहेगा। इस तरह कितने लोगों को अक्षम कह कर मारा जाए, काटा जाए, अलग किया जाए, और कितने लोगों को धरती पर रहने दिया जाए? इस तरह की दुष्ट प्रवृत्ति बनती है। इसी प्रवृत्ति के आधार पर हर देश ने अपना border-security बनाया। इसके आधार पर ही धरती का शोषण हुआ - और धरती बीमार हो गयी। यह इसीलिये हुआ - क्योंकि कल्पनाशीलता और कर्म-स्वतंत्रता का तृप्ति-बिन्दु मानव-जाती को हाथ नहीं लगा। यह बात मानव परम्परा में नहीं है, अध्ययन में आज तक नहीं है, शिक्षा में आज तक नहीं है, संविधान में आज तक नहीं है, न ही व्यवस्था में है। कल्पनाशीलता और कर्म-स्वतंत्रता के तृप्ति-बिन्दु के प्रमाणित होने की गवाही इस धरती के किसी देश में आज तक नहीं है।
कल्पनाशीलता और कर्म-स्वतंत्रता के तृप्ति-बिन्दु को हमें identify करना होगा। उससे पहले मानव-जाती अपराध-प्रवृत्ति से मुक्त नहीं हो सकता। मानव के साथ किया हुआ अपराध भी अंततोगत्वा धरती के साथ ही जुड़ता है - सूक्ष्म विधि से सोचें तो हमको यह पता चलता है।
मध्यस्थ-दर्शन के अनुसंधान से निकला - सह-अस्तित्व में अनुभव ही मनुष्य की कल्पनाशीलता का तृप्ति बिन्दु है। जागृति को प्रमाणित करना ही कर्म-स्वतंत्रता का तृप्ति-बिन्दु है। सह-अस्तित्व में अध्ययन पूर्वक इस तृप्ति-बिन्दु तक पहुँचा जा सकता है। इसके अलावा इस तृप्ति-बिन्दु तक पहुँचने का और कोई रास्ता नहीं है। इस तरह कल्पनाशीलता और कर्म-स्वतंत्रता के तृप्ति-बिन्दु को पहचानने का प्रमाण है - अपराध-मुक्ति।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६)
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