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Friday, July 4, 2008

नाप-तौल, और आवश्यकता का निश्चयन

विज्ञान से नाप-तौल करने के तरीके मिले। micro और macro दोनों levels पर। इन नाप-तौलों से कोई संतुष्टि का बिन्दु मिला नहीं। और छोटा या और बड़ा नाप सकते हैं - यह हमेशा शेष रहता है। कितना भी छोटा नाप लें, और छोटा नाप सकते हैं - यह कल्पना जाती ही है। कितना भी बड़ा नाप लें, और बड़ा नाप सकते हैं - यह कल्पना जाती ही है। कितना नापोगे? कहाँ तक नापोगे? हम जितना नापते हैं - उससे और अधिक नापने की अपेक्षा या अर्हता हम में बना ही रहता है।

नापना और तौलना हम आवश्यकता के अनुसार ही कर पायेंगे। नापना-तौलना हम अपनी आशा या अपेक्षा के अनुसार कर नहीं पायेंगे। जीवन शक्तियां अक्षय हैं - इसलिए हमारी आशा और अपेक्षा अक्षय हैं। आशा या अपेक्षा के अर्थ में आवश्यकता को मिलाना असंभव है। आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ही हम उत्पादन-कार्य करते हैं। इस प्रकार - हम अपनी आशा और अपेक्षा के अर्थ में अपने उत्पादन-कार्य को निश्चित कर ही नहीं सकते।

कार्य का निश्चयन तभी हो सकता है - जब हम अपनी आवश्यकताओं का निश्चयन कर पाएं। निश्चित आवश्यकताओं के लिए क्या और कितना उत्पादन-कार्य करना है - यह आसानी से तय किया जा सकता है। अध्ययन पूर्वक समाधान को हम प्राप्त कर लेते हैं। समाधान निश्चित है और सर्वतोमुखी है। इसलिए समाधान पूर्वक हम अपनी आवश्यकताओं का निश्चयन कर सकते हैं। आवश्यकताओं का निश्चयन समाधान के पहले हो नहीं सकता - क्योंकि जीवन में आशा और अपेक्षा को संयत करने का आधार समाधान से ही आता है।

आवश्यकताओं का निश्चयन परिवार की सीमा में ही सम्भव है - अकेले में नहीं। परिवार ही उत्पादन-कार्य की मूल ईकाई है। परिवार में आवश्यकता के निश्चयन से श्रम-नियोजन पूर्वक आवश्यकता अधिक उत्पादन करके समृद्धि को प्रमाणित किया जाता है। समाधान-समृद्धि संपन्न परिवार ही व्यवस्था में भागीदारी करने के योग्य होता है।

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६)

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