पैसे के चक्कर से किसी एक व्यक्ति को भी संतुष्टि नहीं मिली। पैसे का संग्रह करने जाते हैं - तो और संग्रह करने की जगह बना ही रहता है। पैसे को बांटने (दान आदि) करने जाते हैं - तो और बांटने की जगह रखा ही रहता है। पैसे को गाड़ने जाते हैं - तो और गाड़ने की जगह बना ही रहता है। इससे संतुष्टि की जगह तो कभी किसी को मिलती नहीं है। इसके तृप्ति-बिन्दु की कोई जगह ही नहीं है। इसके तृप्ति-बिन्दु की कोई दिशा भी नहीं है। स्वयं हम पैसे से संतुष्ट हो नहीं सकते। पैसे को बांटने से भी संतुष्ट नहीं हो सकते। ज्यादा पैसे इकट्ठा कर लिए - उससे कोई समझदार हो गया हो, यह प्रमाणित नहीं हुआ। कुछ भी पैसे नहीं रख कर, घर-बार बेच कर कोई समझदार हो गया हो, यह भी प्रमाणित नहीं हुआ। ज्यादा-कम लगा ही रहता है। न ज्यादा में तृप्ति है, न कम में तृप्ति है, न ही बीच की किसी स्थिति में। पैसे के चक्कर में लक्ष्य सुविधा-संग्रह ही बनता है। सुविधा-संग्रह का कोई तृप्ति-बिन्दु नहीं है। कितना भी कर लो - और चाहिए, यह बना ही रहता है। पैसे के चक्कर में मनुष्य की संतुष्टि का कोई निश्चित स्वरुप निकल ही नहीं सकता - इस बात पर हम एक निश्चय पर पहुँच सकते हैं।
मध्यस्थ-दर्शन से मनुष्य के संतुष्टि का स्वरुप निकला - समाधान-समृद्धि। समाधान-समृद्धि एक निश्चित लक्ष्य है। समाधान-समृद्धि सर्व-मानव के लिए तृप्ति-बिन्दु है। समाधान-समृद्धि सब को मिल सकता है। समाधान से पहले समृद्धि होता नहीं। समाधान के लिए अध्ययन है। समाधान का मतलब है - आध्यात्मिक, वैचारिक, व्यवहारिक, और भौतिक सभी मुद्दों पर पूरी तरह सुलझा होना। समाधान आधा-अधूरा नहीं होता। समाधान-संपन्न परिवार अपनी आवश्यकताओं का निश्चयन कर सकता है। आवश्यकताओं का निर्धारण समाधान-संपन्न परिवार में ही सम्भव है। निश्चित आवश्यकताओं के लिए उत्पादन-कार्य को निश्चित किया जा सकता है। आवश्यकता से अधिक उत्पादन करके समृद्धि का अनुभव किया जा सकता है।
दो समाधान-समृद्धि संपन्न परिवारों में किसी भी मुद्दे पर खींच-तान हो ही नहीं सकती। पैसे के चक्कर में खींच-तान के अलावा कुछ हो नहीं सकता।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (जून २००८, बंगलोर)
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