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Sunday, July 27, 2008

मनुष्य परस्परता में प्रतिबिम्बन का कार्य-रूप

अभी आप और मैं आमने-सामने बैठे हैं। आपका प्रतिबिम्ब मुझ पर है और मेरा प्रतिबिम्ब आप पर है। अभी आप और मैं परस्पर पहचान करने में सार्थक हैं। आप मुझको मेरे आकार-आयतन से पहचान रहे हैं - और अध्ययन प्रक्रिया द्वारा मेरा मन, विचार, कार्य, और प्रयोजन आप तक पहुँच रहा है। वैसे ही मुझको भी आपके बारे में हो रहा है। पहचान प्रक्रिया में इस तरह हम सोच-विचार तक पहुँच गए। सोच-विचार के आधार पर तो हम जीते ही हैं। हम दोनों क्या सोच-विचार कर रहे हैं - यह एक दूसरे को समझ आ रहा है। यह आपके और मेरे बीच पहचान का सेतु हुआ।

प्रश्न: जब मैं Bangalore चला जाता हूँ, तो इस प्रतिबिम्बन प्रक्रिया का क्या होता है?

जब आप bangalore चले जाते हैं, तो यह सब मेरी स्मृति में रहता ही है। आपका प्रतिबिम्बन मेरी स्मृति में रहता है, और मेरा प्रतिबिम्बन आपकी स्मृति में रहता है। उस स्मृति को हम समय-समय पर उपयोग करते हैं। अभी जैसे कई लोगों के साथ अपनी पहचान की स्मृतियों को आपको मैंने बताया। एक डाकू से लेकर, एक शंकराचार्य तक की स्मृतियों को मैंने आपको बताया है। बंगलोर जाने के बाद जब आपके साथ मेरी फ़ोन पर बात होती है, तो पीछे वाली सारी स्मृतियाँ आ जाती हैं। उसके continuation में मैं आपकी बात सुनता हूँ। जो मैं सुनता हूँ, वह पुनः स्मृति में जाता है। आप बताईये इसमें missed-pulse कहाँ है? सम्बन्ध में काटने की जगह ही नहीं है। इसको काटने वाली कोई वस्तु ही नहीं है अस्तित्व में। यही सम्बन्ध का मतलब है। सम्बन्ध में दूरी कोई बाधा नहीं है। पास में आने से बहुत कुछ सफल हो गए, ऐसा भी नहीं है। पास में भी सम्बन्ध का निर्वाह है, दूर में भी सम्बन्ध का निर्वाह है। "दूर" का कोई मतलब ही नहीं है।

जड़ वस्तु पर प्रतिबिम्बन ससम्मुखता के साथ ही रहता है। अपारदर्शक वस्तु बीच में होने पर प्रतिबिम्बन अपारदर्शक वस्तु पर हो जाता है।

प्रश्न: telepathy क्या कोई वास्तविकता है?

वास्तविकता के अलावा और क्या है? अभी आप और हम शब्द भाषा के द्वारा telepathy ही तो कर रहे हैं। body language के द्वारा भी telepathy है। हमारे सोच-विचार के साथ भी telepathy है। सोच-विचार फैलता ही है। फैलने के आधार पर एक दूसरे को छूता ही है। छू लिया तो telepathy! अभी जो मैं साधना किया, फलस्वरूप अस्तित्व में अध्ययन किया - अस्तित्व अपने में एक telepathy ही हुआ मेरे लिए। अस्तित्व को कितना दूर और कितना पास माना जाए - आप ही बताओ? अभी मैं जो अध्ययन किया हूँ - उसको कितना दूर माना जाए - कितना पास माना जाए, आप ही बताओ? इसमें दूर-पास का भाषा ही नहीं बनता। इसमें इतना ही कहना बनता है - अस्तित्व को मैं देखा हूँ। अस्तित्व को मैं समझा हूँ। समझ में आ गया तो दूरी क्या है, और पास क्या है? नहीं समझ में आया - तो दूरी क्या है, पास क्या है? जैसे यदि मैं आपको समझा नहीं हूँ - तो इसमें पास क्या हुआ, दूर क्या हुआ? हम आप को समझ गए - तब दूर क्या और पास क्या? समझ दूरी-पास से मुक्त है। एक और दूसरी ईकाई के बीच में दूर-पास है। ईकाई को ज्ञान विधि से पहचान लिया तो उसके बाद उसके साथ दूरी-पास ख़त्म हो गया। यह telepathy नहीं तो और क्या है? फार्मूला है यह! ज्ञान विधि से सम्बन्ध रखें तो telepathy पूरा सच्चाई है। इस तरह जब मानव जब जागृत परम्परा स्थापित कर लेता है, तब बहुत सारे यंत्रों की भी जरूरत नहीं पड़ती। हमारी इच्छा आप को छू लेता है, आप में वैसा ही इच्छा साकार हो जाता है।

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी २००७, अमरकंटक)

2 comments:

Anonymous said...

Rakesh,

Baba mentioned about Smriti ( memory) here. As far as I can think, memory develops only after birth ( we hardly remeber anything from birth and before birth ). So with same same token I would assume it also vanishes when Jeevan leaves the body. So what is difference between Smiriti and Anubhav? I would assume that Anubhav is something which should always continue with Jeevan. It should not vanish. If Smriti is an power of Jeevan , then why it vanishes? How do we understand that even Anubhav has continuity?

Rakesh Gupta said...

smriti is in jeevan - in chitta. 'I' (jeevan) forgets what it doesn't consider important. For example, I don't remember what I had for breakfast exactly two years back. But it doesn't mean that I (jeevan) doesn't have the record of that day. It's just that there are other memories which I consider more important - so this particular memory is dormant. Perhaps if I trace back into memory with help of other milestones in the last 2 years - I can recall what I had for breakfast exactly 2 years back.

There are many evidences of people recalling their past lives. In all such cases, there is a strong event associated in the previous life - like abnormal death.

Smriti is able to capture roop and gun aspects of events, entities, and activities which jeevan (I) sees. Anubhav captures the entirety of existence.

Smriti has continuity - since jeevan is immortal. Anubhav has continuity for the same reason.

The key aspect to recognize is - smriti captures partial aspects of reality. Anubhav captures complete aspects. Smriti has huge expanse - since everything that I see is there in my smriti. Anubhav has the essence of understanding of existence as coexistence. Anubhav in aatma is with all other faculties of jeevan as well - buddhi, chitt, vritti, and mun. Jeevan is complete expression of all the five faculties. Upon anubhav - all faculties are in support of anubhav.