प्रश्न: अध्ययन में स्वयं को जांचने की बात रहती है। स्वयं को हम कैसे जांचें?
उत्तर: यह तीन बिन्दुओं में होता है।
(१) क्या यह प्रस्ताव मुझसे जुड़ा है या नहीं? क्या इसको मैं समझा हूँ या नहीं?
(२) क्या इस प्रस्ताव को प्रमाणित करने के लिए मैं सहमत हूँ या नहीं?
(३) क्या इस प्रस्ताव को मैं प्रमाणित कर पा रहा हूँ या नहीं? प्रस्ताव के अनुसार आचरण कर रहा हूँ कि नहीं?
जैसे - सह-अस्तित्व का प्रस्ताव। क्या मुझे सह-अस्तित्व समझ में आया? मैं सह-अस्तित्व से कैसे जुड़ा हूँ? - यह अपने को जांचने का पहला मुद्दा है। दूसरा - क्या मैं सह-अस्तित्व को प्रमाणित करने के लिए सहमत हूँ? तीसरा - मैं सह-अस्तित्व के प्रस्ताव को कहाँ तक प्रमाणित कर पा रहा हूँ?
दूसरा उदाहरण : - संतान के साथ सम्बन्ध। क्या मुझे संतान के साथ सम्बन्ध समझ में आया? मैं अपनी संतान के साथ कैसे सम्बंधित हूँ? दूसरा - क्या मैं अपनी संतान के साथ सम्बन्ध को प्रमाणित करने के लिए सहमत हूँ? तीसरा - क्या मैं अपनी संतान के साथ सम्बन्ध को प्रमाणित कर पा रहा हूँ?
स्वयं को जांचने से ही अध्ययन सफल होता है। मध्यस्थ-दर्शन से स्वयं को जांचने का एक ठोस आधार मिल गया है।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित। (बंगलोर, जून २००८)
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