मध्यस्थ-क्रिया वह है - जो सम और विषम से अप्रभावित रहता है, और सम और विषम क्रियाओं को संतुलित बना कर रखता है। इसके दो स्वरुप हैं।
(१) परमाणु में संतुलन
परमाणु में संतुलन बनाए रखने की जो बात है - वह उसके मध्यांश (nucleus) द्वारा है। यह परिवेशीय अंशों को निश्चित अच्छी दूरी में स्थित करने के रूप में होता है।
(२) चारों अवस्थाओं में परस्पर संतुलन
इसके केन्द्र में मानव ही है। चारों अवस्थाओं को संतुलित बना कर रखना - यही मानव के ज्ञान-अवस्था में प्रतिष्ठा का वैभव है। मानव जब तक भ्रमित है - तब तक चारों अवस्थाओं के संतुलित रह पाने का कोई स्वरुप ही नहीं निकल सकता। मानव जाति भ्रम-वश मध्यस्थता के इस स्वरुप को प्रमाणित नहीं कर पाया, उल्टे अपराध में ग्रसित हो गया। भ्रम-वश मानव ने मानव का शोषण किया, और बाकी तीनो अवस्थाओं का शोषण किया - जिससे ही यह धरती बीमार हुई है। मध्यस्थता के इस स्वरुप को प्रमाणित करना मानव की ही जिम्मेदारी है।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के द्वारा संवाद पर आधारित (जून २००८, बंगलोर)
2 comments:
Can you give examples of 'sam' 'visham' and 'madyastha' gunas?
Also - how does a madyastha guna mediate between a sam and a visham guna? An illustration of the principle in sah astitva would be very welcome.thx
sam gun is expression of growth, or positive.
visham gun is expression of decay or negative.
madhyasth is expression of continuity and mediation.
for example - a deer is born, is sam-kriya. it dies, is visham-kriya. it lives, and expresses its natural-self or deer-ness is madhyasth.
another example - i become angry is visham. i become overjoyed is sam. i live in orderliness - is madhyasth.
madhyasth-kriya vyavastha ko ingit kartee hai. an atom's vyavastha is innate to an atom. it is effected by its nucleus. it is by keeping the subatomic particles in definite distances. madhyasth-kriya by a human-being (the second type described in this post) - is affected by ensuring there is equilibrium in all natural-orders.
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