व्यापक वस्तु ही जड़ प्रकृति में मूल ऊर्जा के रूप में है। व्यापक ही चैतन्य प्रकृति में ज्ञान के रूप में है। चैतन्य प्रकृति में जीव-संसार भी है। जीव-संसार में चार विषयों का ज्ञान प्रमाणित होता है। मानव में चार विषयों के साथ, पाँच संवेदनाओं का भी ज्ञान हुआ। जीव-चेतना की सीमा में मानव इतना ही कर पाया। इसका प्रमाण है - मनाकार का साकार होना। मनः स्वस्थता का वीरान रहना। जीव-चेतना में मनः स्वस्थता का खाका भरा नहीं है। वहां कोई दूब उगा नहीं है। उस मैदान को भरना है, हरा-भरा करना है। यह कैसे होगा? मानव-लक्ष्य पूरा होने से मनः स्वस्थता प्रमाणित होती है। मनः स्वस्थता जीवन में सुख, शान्ति, संतोष, और आनंद है। अखंड समाज/राष्ट्र के रूप में समाधान-समृद्धि-अभय-सहस्तित्व है। यदि हम मानव-लक्ष्य के साथ जीते हैं, प्रमाणित करते हैं - उसमें दूरी क्या है? पास क्या है? दूरी और पास रासायनिक भौतिक वस्तुओं की सीमा में स्पष्ट होती है। जीवन के साथ जीवन की गति है। कल्पनाशीलता को यदि आंकलित किया जाए - तो कोई दूरी है ही नहीं। दूरी का कोई मतलब ही नही है। केवल कल्पना को जोड़ने से यह हुआ। उसके बाद अनुभव जोड़ने से दूरी शुन्य हो गयी। चारों अवस्थाओं के साथ दूरी शुन्य हो जाता है। शून्य दूरी को हम प्रमाणित कर पाते हैं - इससे बड़ा प्रमाण क्या होगा?
इसको अच्छी तरह से हृदयंगम करने से फ़िर अध्ययन में आपको कहीं अटकना नहीं है। हम जो लिखे हैं - वह आपको समझ में आएगा। समझ में आ गया तो निर्णय लेने की ताकत आती है। निर्णय लेने की ताकत आने के बाद आप कुछ करोगे ही करोगे! निर्णय लेने के बाद क्या बात है? कहाँ रुकेंगे? नहीं रुक सकते! निर्णय लेने के बाद रुकने की जगह नहीं है।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी २००७, अमरकंटक)
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