समझने के बारे में मुख्य मुद्दा यह है - "पढ़ना समझना नहीं है।" पढने पर "सूचना" होता है। अर्थ की सूचना जब आता है तो उस अर्थ के मूल में अस्तित्व में वस्तु होता है। अस्तित्व में वस्तु पहचान में आया तो समझ में आया। जैसे - "पानी" एक शब्द है। पानी अस्तित्व में एक वस्तु है। "पानी" शब्द से प्यास बुझता नहीं है। पानी वस्तु से ही प्यास बुझता है। इसी प्रकार हर शब्द का अर्थ है। उस अर्थ के मूल में अस्तित्व में वस्तु है। वस्तु समझ में आने से हम समझे।
अभी तक मनुष्य के इतिहास में मनुष्य कैसा है, क्यों है - इसका अध्ययन नहीं हुआ था। दूसरे समग्र अस्तित्व कैसा है, क्यों है - इसका अध्ययन नहीं हुआ था। समग्र अस्तित्व और मानव का अध्ययन न होने से समग्र अस्तित्व में मानव की क्या भागीदारी हो, यह समझ में नहीं आया था। यह न भौतिकवादी विधि से समझ में आया था, न ईश्वर-वादी विधि से समझ आया था। मध्यस्थ-दर्शन दो इन दोनों के विकल्प स्वरूप में आया - उससे मानव का अध्ययन और अस्तित्व का अध्ययन दोनों सम्भव हो गया।
मानव और अस्तित्व क्यों है, और कैसा है? - इसका पूरा ज्ञान मैंने प्राप्त कर लिया। क्यों है? - इससे "रहने" का उत्तर आता है। कैसे है? - इससे "होने" का उत्तर आता है। मानव कैसे है? - इसका उत्तर है, अस्तित्व में प्रकटन विधि पूर्वक मानव धरती पर प्रकट "होना" हुआ। मानव क्यों है? - इसका उत्तर है, मानव के "रहने" का प्रयोजन है - समाधान, समृद्धि, अभय, और सह-अस्तित्व पूर्वक "रहना"। "होना" और "रहना" समझ में आने के लिए ही अध्ययन है। अध्ययन से समझ, और समझ से जीना।
इस पर प्रश्न बनता है - अभी तक मनुष्य क्या जीता नहीं रहा क्या? इसका उत्तर है - अभी तक मनुष्य जीव-चेतना में जिया है। मानव-चेतना में जिया नहीं है। जीव-चेतना में होते हुए भी मनुष्य जीवों से अच्छा जीने का सोचा, क्योंकि मानव को कल्पनाशीलता और कर्म-स्वतंत्रता बिरासत में मिला ही था। कल्पनाशीलता और कर्म-स्वतंत्रता के चलते मनुष्य ने सामन्याकान्क्षा और महत्त्वाकांक्षा संबन्धी सभी वस्तुओं को प्राप्त कर लिया। इस तरह मानव अपने परिभाषा के अनुरूप मनाकार को साकार करने के चौखट में आ गया। मनः स्वस्थता का चौखट टटोला तो पता चला - वीरान पड़ा है! मनः स्वस्थता के पक्ष में मानव-जाती bankrupt है। मनाकार को साकार करने के पक्ष में हम समृद्ध हैं। यह कुल मिला कर अभी तक के मानव के जिए होने की समीक्षा हुई। मनुष्य जाति द्वारा बिना मनः स्वस्थता को प्रमाणित किए मनाकार को साकार करने के क्रम में ही धरती बीमार हुई। धरती के बीमार होने से जो प्रश्न-चिन्ह मानव-जाति के सम्मुख लग गया है - उसी के उत्तर में मध्यस्थ-दर्शन का विकल्प है। यह विकल्प मानव-जाति के मनः स्वस्थता की रिक्तता को भरने के लिए ही प्रकट हुआ है।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी २००७, अमरकंटक)
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