प्रश्न: जब ज्यादा सोचते हैं तो सिर में भारीपन, दर्द वगैरह होता है। आप कहते हैं, जीवन ही है जो सोचता है - उससे मेरी कल्पना जाती है, जीवन सिर में है!
उत्तर: जीवन में विचार के अनुसार सिर में हलचल होता रहता है। जैसे- कभी भारी लगना, कभी हल्का लगना। मानसिकता के अनुसार जीवन मेधस पर संकेत प्रसारित करता है। उन संकेतों के अनुसार मेधस में हलचल होता है। जब तक हम इस हलचल प्रक्रिया के प्रति अनजान रहते हैं, तब तक कभी गरम, कभी नरम, कभी थकान, कभी हल्कापन, कभी भारीपन - यह सब होता रहता है। जब मेधस-तंत्र के क्रियाकलाप को लेकर हम पारंगत हो जाते हैं, तो यह सब कुछ नहीं होता। जीवन ही दृष्टा है। जीवन शरीर में मेधस क्रिया-कलाप का भी दृष्टा बन जाता है।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६, अमरकंटक)
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