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Tuesday, July 28, 2009

अध्ययन एक woundless process है.

प्रश्न: अध्ययन करने के लिए क्या नौकरी वगैरह छोड़ने की आवश्यकता है?

उत्तर: अध्ययन करना हर व्यक्ति के लिए हर अवस्था में सुगम है। चाहे कोई व्यक्ति एक रूपया कमाता हो, या एक लाख कमाता हो, या ख़ाक कमाता हो। हर व्यक्ति हर अवस्था में अध्ययन कर सकता है। अध्ययन के लिए कोई अतिवाद करने की आवश्यकता नहीं है।

आप ही बताओ - झाड़ से पत्ता तोड़ने, और झाड़ से पत्ता गिरने में कितना अन्तर है? पत्ता जब पेड़ से गिरता है, तो पक कर गिरता है। उसी प्रकार मानव-चेतना से संपन्न होने पर हमारी सारी निरर्थकताएं झड़ जाती हैं। यह एक पूरी तरह woundless process है।

जिस तरीके से आप दाना-पानी उपार्जित करते हो - वह ठीक है, या नहीं है - यह समझदारी के बाद समीक्षित होता है। यदि वह तरीका अर्जित-ज्ञान के अनुकूल है, तो हमको क्या तकलीफ है? यदि वह तरीका ज्ञान के अनुकूल नहीं है - तो वह redesign अपने आप से स्वयं में उभर आता है। वह redesign कोई दूसरा आदमी आ कर नहीं करेगा। समझने के बाद अपने जीने का डिजाईन अपने आप से स्वयं में उभर आता है। यह वैसे ही है - जैसे, प्राण-सूत्रों में नयी रचना-विधि अपने आप से उभर आती है।

एक ही डिजाईन में हर व्यक्ति जियेगा - यह भी बेवकूफों की कथा है! सभी आदमी एक ही डिजाईन में जी नहीं पायेगा। हर आदमी के साथ डिजाईन बदलेगा। हर डिजाईन के साथ स्वावलंबन की स्थिति ध्रुव रहेगी। हमारा अपने परिवार की आवश्यकताओं से अधिक आवर्तनशील विधि से श्रम पूर्वक उत्पादन कर लेना ही "स्वावलंबन" है। मानवीयता संपन्न परिवार की आवश्यकताएं होती हैं - शरीर पोषण, संरक्षण, और समाज-गति के अर्थ में।

श्रम पूर्वक उत्पादन करने का डिजाईन समझदारी संपन्न होने पर आपमें अपने आप से निकलेगा। एक ही डिजाईन में सभी उत्पादन करेंगे - यह मूर्खता की बात है। इस तरह मानव एक मशीन नहीं है। मानव एक संवेदनशील और संज्ञानशील इकाई है। संज्ञानशीलता में संवेदनाएं नियंत्रित रहती हैं। फलस्वरूप हम व्यवस्था में जी कर प्रमाणित होते हैं। इतना ही तो सूत्र है। इसको यदि हम सही तरह से उपयोग कर लेते हैं, तो संसार के लिए उपकार करने की जगह में आ जाते हैं।

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६, अमरकंटक)

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