जब तक जीवन की दसों क्रियाएं क्रियाशील नहीं होती - तब तक स्वयं में खोखलापन बना ही रहता है। हम कहीं न कहीं बैसाखी लगा कर चलते रहते हैं। संसार हमको प्रणाम करता है, और हम अपने को सिद्ध मान लेते हैं। जबकि सच तो यह है - या तो मनुष्य साढ़े चार क्रिया में भ्रमित जीता है, या दस क्रिया में जागृति को प्रमाणित करता है।
प्रश्न: तो क्या साढ़े चार क्रिया और दस क्रिया के बीच में कोई स्थिति नहीं है?
उत्तर: नहीं। साढ़े चार क्रिया और दस क्रिया के बीच में कोई स्थिति नहीं है। साढ़े चार क्रिया से दस क्रिया में परिवर्तित होने की बात वैसे ही है, जैसे बत्ती जलाया और प्रकाश हो गया।
प्रश्न: तो क्या अध्ययन एक समय-बद्ध प्रक्रिया नहीं है?
उत्तर: नहीं। अध्ययन कोई "समयबद्ध प्रक्रिया" नहीं है। अध्ययन एक "उपलब्धि" है। पठन एक समय-बद्ध प्रक्रिया है, लेकिन अध्ययन एक "उपलब्धि" है। पठन पूर्वक स्मरण, फ़िर अध्ययन के लिए प्राथमिकता बनना, उसके बाद अध्ययन है। स्मरण पूर्वक अनुभव की रोशनी में, अधिष्ठान के साक्षी में किया गया प्रयास अध्ययन है।
प्रश्न: तो अभी जो हम कर रहे हैं, क्या वह अध्ययन का "प्रयास" नहीं है?
उत्तर: नहीं। यह अध्ययन की पृष्ठभूमि है। "अध्ययन होना" मतलब - उजाला हो गया। अध्ययन से पहले "उजाले की अपेक्षा" रहा। अध्ययन की पृष्ठ-भूमि ४.५ क्रिया से १० क्रिया में लाँघने की तैय्यारी है। उस तैय्यारी में समय लगता है।
प्रश्न: तो कोई व्यक्ति यदि कहता है "मैं अध्ययन-क्रम में हूँ" - तो उसका क्या आशय है?
उत्तर: अध्ययन की पृष्ठभूमि संजो रहा हूँ - यह तर्जुमा कर लो! उसके बिना मंगल-मैत्री होता नहीं। अध्ययन "क्रम" नहीं होता। दो ही स्थितियां हैं, पहली - "अध्ययन की पृष्ठ भूमि", दूसरी - "अध्ययन हो गया"। यदि पूरी यात्रा को एक फीट की दूरी माना जाए - तो ११.५ इंच की पृष्ठभूमि है, केवल आधा इंच अध्ययन है। अध्ययन और प्रमाण में कोई दूरी नहीं है। इससे ज्यादा क्या कहा जाए? गणितीय भाषा से भी बात करें तो इससे ज्यादा कैसे इसको बताया जाए?
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६, अमरकंटक)
प्रश्न: तो क्या साढ़े चार क्रिया और दस क्रिया के बीच में कोई स्थिति नहीं है?
उत्तर: नहीं। साढ़े चार क्रिया और दस क्रिया के बीच में कोई स्थिति नहीं है। साढ़े चार क्रिया से दस क्रिया में परिवर्तित होने की बात वैसे ही है, जैसे बत्ती जलाया और प्रकाश हो गया।
प्रश्न: तो क्या अध्ययन एक समय-बद्ध प्रक्रिया नहीं है?
उत्तर: नहीं। अध्ययन कोई "समयबद्ध प्रक्रिया" नहीं है। अध्ययन एक "उपलब्धि" है। पठन एक समय-बद्ध प्रक्रिया है, लेकिन अध्ययन एक "उपलब्धि" है। पठन पूर्वक स्मरण, फ़िर अध्ययन के लिए प्राथमिकता बनना, उसके बाद अध्ययन है। स्मरण पूर्वक अनुभव की रोशनी में, अधिष्ठान के साक्षी में किया गया प्रयास अध्ययन है।
प्रश्न: तो अभी जो हम कर रहे हैं, क्या वह अध्ययन का "प्रयास" नहीं है?
उत्तर: नहीं। यह अध्ययन की पृष्ठभूमि है। "अध्ययन होना" मतलब - उजाला हो गया। अध्ययन से पहले "उजाले की अपेक्षा" रहा। अध्ययन की पृष्ठ-भूमि ४.५ क्रिया से १० क्रिया में लाँघने की तैय्यारी है। उस तैय्यारी में समय लगता है।
प्रश्न: तो कोई व्यक्ति यदि कहता है "मैं अध्ययन-क्रम में हूँ" - तो उसका क्या आशय है?
उत्तर: अध्ययन की पृष्ठभूमि संजो रहा हूँ - यह तर्जुमा कर लो! उसके बिना मंगल-मैत्री होता नहीं। अध्ययन "क्रम" नहीं होता। दो ही स्थितियां हैं, पहली - "अध्ययन की पृष्ठ भूमि", दूसरी - "अध्ययन हो गया"। यदि पूरी यात्रा को एक फीट की दूरी माना जाए - तो ११.५ इंच की पृष्ठभूमि है, केवल आधा इंच अध्ययन है। अध्ययन और प्रमाण में कोई दूरी नहीं है। इससे ज्यादा क्या कहा जाए? गणितीय भाषा से भी बात करें तो इससे ज्यादा कैसे इसको बताया जाए?
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६, अमरकंटक)
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