"मनुष्य में कार्य-ज्ञान होता है।" हम कुछ भी कार्य करना सीख सकते हैं, सिखा सकते हैं - यह इस बात का प्रमाण है। यह बात मानव-परम्परा में आ चुकी है।
समय (क्रिया की अवधि) और दूरी के नाप के आधार पर कार्य का पहचान होता है। अत्याधुनिक संसार (प्रचलित-विज्ञान) ने macro और micro scale पर नापने की विधियां दी, जिससे कार्य की पहचान होती है। कार्य करने के लिए जो ज्ञान होता है, उसे "कार्य-ज्ञान" कहते हैं।
मनुष्य में कार्य-ज्ञान ही उसके कार्य करने की ऊर्जा है।
कार्य-ज्ञान के मूल में "कारण स्वरूप" में ज्ञान है। यही मूल ऊर्जा है। यही साम्य-ऊर्जा है। मनुष्य में साम्य-ऊर्जा ज्ञान स्वरूप में है। ज्ञान के आधार पर ही मनुष्य को कार्य-ज्ञान होता है। यह एक बहुत ही महिमा-संपन्न मुद्दा है। इसको आप अच्छे से डूब के समझ लो! यही स्थूल और सूक्ष्म के बीच की विभाजन रेखा है।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६, अमरकंटक)
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