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Tuesday, July 7, 2009

सुख और स्वयं में विश्वास

सर्व-मानव में सुखी होने (तृप्त होने) की अपेक्षा है, पर उसे सुख (तृप्ति-बिन्दु) मिला नहीं है। "मानव सुखी होना चाहता है" - यह निर्णय है। "मानव अभी तक सुखी नहीं हुआ है" - यह समीक्षा है।

सुखी होने के लिए "स्वयं में विश्वास" संपन्न होना आवश्यक है।

स्वयं में विश्वास संपन्न होने के लिए "सह-अस्तित्व में अध्ययन" पूर्वक अनुभव संपन्न होना आवश्यक है।

हर मनुष्य में कल्पनाशीलता और कर्म-स्वतंत्रता स्वत्व के रूप में है। सह-अस्तित्व में अध्ययन के लिए कल्पनाशीलता और कर्म-स्वतंत्रता का प्रयोग आवश्यक है।

मनुष्य द्वारा अपनी कल्पनाशीलता और कर्म-स्वतंत्रता के तृप्ति-बिन्दु को पहचानने के लिए ही अध्ययन है।

कल्पनाशीलता और कर्म-स्वतंत्रता का तृप्ति बिन्दु ही "सुख" है - जो "स्वयं में विश्वास" के रूप में प्रकट होता है।

जीवन-ज्ञान को नकारने वाला इस संसार में कोई नहीं है। अपने आप पर विश्वास करने के लिए स्वयं का अध्ययन नहीं चाहने वाला भी क्या कोई होगा? स्वयं पर विश्वास न करना चाहता हो - क्या ऐसा भी कोई व्यक्ति होगा? इसी आधार पर शुरू किए - स्वयं में विश्वास सुखी होने के लिए ज़रूरी है। उसके लिए ज्ञान, विवेक, विज्ञान संपन्न होने की आवश्यकता है। इन तीनो के लिए सह-अस्तित्व में अध्ययन करायेंगे। ये तीनो अध्ययन होने पर अपने आप से स्वयं में विश्वास होता है। फ़िर मनुष्य को विश्वास के लिए बाहर से कोई प्रेरणा की ज़रूरत नहीं पड़ती।

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६, अमरकंटक)

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