प्रश्न: आप (अस्तित्व के स्वरूप के बारे में) जो कहते हैं, वह मुझको दिखता नहीं है।
उत्तर: आपको दिखता नहीं है - यह कोई "शिक्षा" नहीं है। आपको दिखता नहीं है - क्या यह कोई "संदेश" है?
नहीं।
आपको दिखता नहीं है - क्या यह अस्तित्व के स्वरूप के इस प्रस्ताव पर कोई "प्रश्न" है?
नहीं।
फ़िर क्या चीज है यह?
यह मेरी अभी की यथा-स्थिति है।
आपको दिखता नहीं है - क्योंकि आप ध्यान नहीं दिए। यही इसका उत्तर है। जैसे हम बैठे हैं, हमारे सामने से कई लोग निकल जाते हैं, और हम कई को देख नहीं पाते हैं। क्यों नहीं देख पाते - क्योंकि हमने उस ओर ध्यान नहीं दिया। इसके ऊपर और कोई तर्क नहीं किया जा सकता। न इस पर और कोई चर्चा से कोई उपलब्धि हो सकती है। आप ध्यान देंगे तो आप को दिखेगा। आप ध्यान नहीं देंगे तो आप को नहीं दिखेगा।
जब तक अस्तित्व के स्वरूप को देखने (समझने) की प्राथमिकता स्वयं में नहीं बनती, तब तक हमे उसका अनुभव नहीं होता। इसमें किसी पर आक्षेप नहीं है। न यह किसी की आलोचना है।
अध्ययन के लिए ध्यान देना होता है। अध्ययन पूर्वक अनुभव के बाद ध्यान बना ही रहता है।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६, अमरकंटक)
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