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Sunday, July 5, 2009

राज-गद्दी और धर्म-गद्दी

मानव का अध्ययन करने पर पता चला - मानव को आदि-काल से कल्पनाशीलता और कर्म-स्वतंत्रता का अधिकार है। इसकी गवाही है - मनुष्य जंगल से गुफा में, गुफा से झोपडी में, कबीले में, गाँव में, और आज शहर तक पहुँच गया। इस बीच मनुष्य अपनी सुविधा के लिए और जंगली-जानवरों से अपने बचाव के लिए औजार तैयार किया। गाँव-कबीला बसने से पहले ही यह औजार तैयार करना हो चुका था। गाँव-कबीला बसने के बाद एक गाँव-कबीला वाले दूसरे गाँव-कबीला वालों के साथ लूट-खसोट मार-पीट करते रहे। इसमें से ही कोई "बुद्दिमान" फ़िर सुझाया होगा - सबको लूट-पाट, झगडा करने की क्या ज़रूरत है? सामान्य लोग अमन चैन से रहे; लूट-पाट और लड़ने आदि की जिम्मेदारी हम ले लेते हैं। उसी तरह "शासन" की शुरुआत हुई।

इसके मूल में यह परिकल्पना दी गयी - "ईश्वर ही मूलतः शासक है।" राजा ईश्वर का ही प्रतिनिधि है। "राजा गलती नहीं करता" - यह मान लिया। इस मान्यता के आधार पर राजा का सम्मान हुआ। राजा जो कहता है वही संविधान है - यह भी मान लिया। कुछ समय बाद पता चला यह पर्याप्त नहीं है। तो उसके बाद मंत्रियों को जोड़ लिया - मंत्रणा करने के लिए! उसके बाद सभा को जोड़ लिया।

सभा-विधि से या राजा-विधि से राज्य की सच्चाई पहचान में नहीं आयी। यह दुःख सतत बना रहा। अमन-चैन से रहने का राज-गद्दी का आश्वासन पूरा नहीं हुआ। इसके विपरीत राज-गद्दी अपराध-ग्रस्त हो गयी।

इसी के साथ धर्म-गद्दी तैयार हुई, जिसने आश्वासन दिया - पापी को तारने का, अज्ञानी को ज्ञानी बनाने का, और स्वार्थी को परमार्थी बनाने का। "पाप, अज्ञान-, और स्वार्थ ही आदमी को रास्ते से बे-रास्ता करता है" - यह सोचा गया। अभी तक कोई पापी के तारे होने का, अज्ञानी के ज्ञानी बनने का, और स्वार्थी के परमार्थी बनने की कोई गवाही मिलती नहीं है। इसके विपरीत धर्म-गद्दी "कीर्ति-ग्रस्त" हो गयी। धर्म-गद्दी के सारे प्रयास समुदाय-वादी अपने-पराये की दीवारों को और ऊंचा बनाने में लग गए। इस ढंग से धर्म-गद्दी से भी हम खाली हो गए हैं।

व्यवस्थित होने, और व्यवस्था में जीने की मनुष्य में सहज-अपेक्षा है। इनके लिए धर्म-गद्दी और राज्य-गद्दी के आश्वासन झूठे सिद्ध हो गए हैं। समझदारी पूर्वक मनुष्य स्वयं व्यवस्थित रहता है, और समग्र-व्यवस्था में भागीदारी करता है। मनुष्य के समझदारी संपन्न होने के लिए ही मध्यस्थ-दर्शन का प्रस्ताव है। समझदारी पूर्वक मनुष्य अखंड-समाज और सार्वभौम-व्यवस्था को प्रमाणित कर सकता है।

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६, अमरकंटक)

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