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Saturday, July 4, 2009

व्यापार में शोषण से मुक्ति

मानव अपने इतिहास में अपनी परिभाषा के अनुरूप मनाकार को साकार करने का काम करता ही आया। मनाकार को साकार करने को प्रमाणित करने के क्रम में सामान्याकान्क्षा (आहार, आवास, अलंकार) और महत्त्वाकांक्षा (दूर-श्रवण, दूर-दर्शन, दूर-गमन) संबन्धी वस्तुओं को जो कारीगरी विधि से बनाया, उसका व्यापार-विधि से लोकव्यापीकरण हुआ। व्यापार लाभ से जुड़ा। शोषण के बिना लाभ होता नहीं है। लाभ-प्रवृत्ति से व्यापार शोषण के लिए प्रेरित हो गया.  फलस्वरूप ज्यादा-कम की सीढियां लगती गयी। ज्यादा-कम की सीढियां संघर्ष का आधार होता गया। जिसके पास ज्यादा पैसा है, वे व्यापार करते रहे - ऐसी सोच फ़िर उभरी। यही शोषण से ग्रसित व्यापार चलते-चलते विश्व-व्यापार तक पहुँच गया। ग्राम-स्तर पर व्यापार भी शोषण-ग्रसित है। विश्व-स्तर पर व्यापार भी शोषण-ग्रसित है।

यह किसी का विरोध या किसी पर आरोप नहीं है। जो मनुष्य ने किया, और उसका जो प्रभाव हुआ - उसकी समीक्षा है।

व्यापार-कार्य में शोषण-मुक्त होना है, या नहीं? - यह सोचने का एक मुद्दा है।

"लाभ-हानि मुक्त आवर्तनशील अर्थ-व्यवस्था" सह-अस्तित्व की समझदारी के बिना स्थापित हो नहीं सकती।

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६, अमरकंटक)

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