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Saturday, July 4, 2009

मानव का अध्ययन

अध्ययन को शुरू करने के दो छोर हैं। मनुष्य से हम अध्ययन को शुरू कर सकते हैं। दूसरे - सह-अस्तित्व से शुरू कर सकते हैं। मनुष्य से शुरू करते हैं तो मनुष्य में शरीर, और शरीर में अंग-अवयव का होना पाया जाता है। जीवंत-शरीर में पाँच ज्ञान-इन्द्रियों के आधार पर मनुष्य अनुकूलता और प्रतिकूलता को व्यक्त करता है। जब यह व्यक्त करना बंद हो जाता है, तो मृतक शरीर घोषित कर देते हैं। जीवंत-शरीर द्वारा जो कार्य होता है, उसमें जीवन की आशा का आंशिक रूप ही व्यक्त होता है। शरीर-शक्तियां जीवन-शक्तियों की अपेक्षा में नगण्य हैं। उसकी गवाही है - जीवन के शरीर से पृथक हो जाने के बाद हम शरीर को तुंरत ठिकाने लगा ही देते हैं!

"जीवन के बिना मनुष्य निरर्थक है" - यह मनुष्य में आज भी स्वीकृत है। लेकिन जीवन क्या है? - यह मनुष्य को अज्ञात है। क्या चीज है जो शरीर से पृथक होता है जो हम मनुष्य को मृतक मान लेते हैं? - यह मनुष्य को अज्ञात है।

जीवंत कैसे होना शुरू होता है, और मृत्यु कैसे होता है - यह समझना मानव का अध्ययन हुआ। जन्म और मृत्यु के बीच में जो कुछ भी होता है - वह मानव-परम्परा का काम हुआ।

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६, अमरकंटक)

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