विज्ञानी जो भी बात किया - मानव को छोड़ कर किया। "मानव को छोड़ कर बात करनी है" - यह जिद्द पकड़ ली। "यंत्र यह कहता है, गणित यह कहता है" - ऐसी व्याख्याएं दी। विज्ञानी का यंत्र पर विश्वास करने का आधार था - यंत्र का बारम्बार वही क्रिया करना। उसके साथ यंत्र स्पीड भी ले आया। "यंत्र जिस स्पीड से काम कर सकता है, मानव उस स्पीड से काम नहीं कर सकता।" "यंत्र विश्वास योग्य है। मानव विश्वास योग्य नहीं है।" - यह ठहराया। जबकि मानव ही देखता है, मानव ही करता है, मानव ही यंत्र बनाता है। विज्ञानी की सोच यंत्र केंद्रित है, मानव-केंद्रित नहीं है।
मानव का "स्वयं पर विश्वास" करने का आधार ही नहीं है विज्ञानी के पास!
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६, अमरकंटक)
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