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Thursday, July 30, 2009

लाभोन्माद, भोगोन्माद, कामोन्माद के चक्रव्यूहों से मुक्ति

स्वभाव गति को बनाए रखते हुए अध्ययन के लिए ध्यान देने की आवश्यकता है। आवेशित-गति में अध्ययन नहीं होता। आवेश पीड़ा पैदा करने का स्त्रोत है। आज की स्थिति में जो शिक्षा दी जा रही है, वह आवेश पैदा करने के अर्थ में है। लाभोन्माद, भोगोन्माद, कामोन्माद द्वारा आवेशित कराने के लिए ही आजकल की पूरी शिक्षा है। उन्माद एक आवेश ही है। ये तीन उन्माद कितने बड़े चक्रव्यूह हैं - आप सोच लो! इन चक्रव्यूहों से बच कर हमको व्यवहारवादी समाज-व्यवस्था, आवर्तनशील अर्थ-व्यवस्था, और मानव-संचेतना वादी मानसिकता की तरफ़ आना है।

प्रश्न: इन चक्रव्यूहों से हम कैसे छूट सकते हैं?

उत्तर: हमारे जीवन में अतृप्ति या खोखलापन अन्तर्निहित है। चाहे लाभ का आवेश हो, चाहे काम का आवेश हो, चाहे भोग का आवेश हो - आवेश को हम अपनी मानसिकता में सदा के लिए स्वीकार नहीं पाते हैं। जैसे- लाभ का आवेश "सही" है - यह हम किसी न किसी जगह आ कर नकार ही देते हैं। तीनो में से कोई भी आवेश "सही" है - यह हम सदा के लिए मान नहीं सकते! यह जीवन में निहित "सच्चाई के शोध" का स्त्रोत है। यह "सच्चाई की शोध" का स्त्रोत जो जीवन में बना हुआ है, उसी आधार पर हम इन चक्रव्यूहों से बच कर निकल सकते हैं। कैसे निकलेंगे? - woundless विधि से! हम जो सुविधा-संग्रह विधि से जी रहे हैं, उससे समाधान-समृद्धि विधि से जीना ज्यादा श्रेष्ठ है। यह हमको भी स्वीकार होना, हमारे परिवार जनों को भी स्वीकार होना।

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६, अमरकंटक)

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