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Wednesday, November 12, 2008

सार्थकता के प्रति समर्पण

ईश्वरवाद ने मनुष्य को पापी, अज्ञानी, स्वार्थी बता कर मानव का अवमूल्यन किया। पापी को तारने, अज्ञानी को ज्ञानी बनाने, और स्वार्थी को परमार्थी बनाने की भक्ति-विरक्ति की अभ्यास विधियां प्रस्तावित की। इस तरह कोई पापी तरने का, कोई अज्ञानी ज्ञानी होने का, कोई स्वार्थी परमार्थी होने का प्रमाण नहीं मिला।

भौतिकवाद ने मनुष्य को एक भौतिक-रासायनिक रचना बताते हुए मानव का निर्मुल्यन किया। मनुष्य को संवेदनाओं की कठपुतली के रूप में पहचाना। संवेदनाओं को राजी रखने के लिए सुविधा-संग्रह को मनुष्य का लक्ष्य बताया। सुविधा-संग्रह सभी को नहीं मिल सकता - इसलिए संघर्ष और शोषण अनिवार्य हो गया। जिसके चलते धरती बीमार हो गयी।

ये दोनों बात सार रूप में समझ आने के बाद आदमी को पूछने की ज़रूरत है - सार्थकता क्या है? सार्थकता के प्रति स्वयं में समर्पण होने की आवश्यकता है।

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६, अमरकंटक)

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