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Tuesday, November 11, 2008

शुभकामना का कार्य रूप

प्रश्न: हम दूसरे के लिए जो शुभ कामनाएं करते हैं, उससे क्या कुछ होता भी है?

उत्तर: हमारी शुभ-कामना सामने व्यक्ति के पुण्य से ही फलित होती है। पुण्य का मतलब है - कायिक, वाचिक, मानसिक रूप से मानव जो न्याय करता है, समाधान को प्रस्तुत करता है, उससे है। शुभ-कामना सामने व्यक्ति को शुभ करने के लिए उत्साहित करने के अर्थ में है। उससे ज्यादा कुछ नहीं। शुभ-कामना इस तरह से शुभ के लिए प्रेरणा देने के रूप में है। इसका स्वाभाविक रूप इतना ही है। यदि इसमें थोड़ा भी कुछ और होता तो - अस्तित्व की स्वयं-स्फूर्तता के नियम का हनन होता! प्रकृति में इसके अलावा और कोई व्यवस्था ही नहीं है। श्राप और अनुग्रह के चक्कर में संसार कितना परेशान हुआ - यह अपने आप में एक इतिहास है!

शुभ-कामना होता है - यह सही है।
शुभ घटित होता है - यह भी सही है।
शुभ के लिए मानव प्यासे हैं - यह भी सही है।

अब यहाँ कह रहे हैं - समझदारी के आधार पर कार्य-व्यवहार करने से ही शुभ घटित होता है।

इस ढंग से यह बात सामान्य हो गयी। समझदारी को अध्याव्सायिक (अध्ययन या शिक्षा) विधि से प्रमाणित करने की आवश्यकता थी - उसमें मैं सफल हो गया! इस बात का लोकव्यापीकरण भले ही धीरे-धीरे हो - लेकिन इतने में तो मैं सफल हो गया। अध्ययन विधि से आदमी समझदार हो सकता है - इस जगह में तो मैं आ गया हूँ।

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी २००७, अमरकंटक)

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