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Tuesday, November 4, 2008

सत्ता में सम्पृक्त्ता वश प्रकृति क्रियाशील है।

प्रकृति क्रिया है। प्रकृति सत्ता में संपृक्त है। सत्ता क्रिया नहीं है। सत्ता व्यापक है, पारगामी है, और पारदर्शी है। सत्ता ही जड़ प्रकृति के लिए मूल ऊर्जा है। यही चैतन्य प्रकृति के लिए ज्ञान है।

सत्ता में सम्पृक्त्ता वश ही जड़ और चैतन्य प्रकृति क्रियाशील है। सभी क्रियाओं का आधार सत्ता ही है।

जैसे -नियम कोई क्रिया नहीं है। पदार्थ-अवस्था नियम-सम्पन्नता से क्रियाशील (आचरण-शील) है। "नियम" शब्द व्यापक को ही इंगित करता है।

ज्ञान कोई क्रिया नहीं है। जागृत-मनुष्य ज्ञान-सम्पन्नता से क्रियाशील (आचरण-शील) है। "ज्ञान" शब्द व्यापक को ही इंगित करता है।

मैं क्रियाशील हूँ, सब कुछ क्रियाशील है - यह प्राकृतिक है। मैं कैसे क्रियाशील हूँ? सब कुछ कैसे क्रियाशील है? - यह मनुष्य को समझने की आवश्यकता है। यह समझ में आना = सत्ता में प्रकृति की सम्पृक्त्ता समझ में आना = अस्तित्व में व्यवस्था का सूत्र समझ में आना = स्वयम का व्यवस्था में होने, और समग्र व्यवस्था में भागीदारी करने का स्वरूप समझ में आना।

प्रश्न: हमको तो व्यापक एक खाली स्थान दीखता है, इससे ज्यादा नहीं! यह खाली स्थान "ऊर्जा" है, इस बात को कैसे समझें?

उत्तर: व्यापक में हम भीगे हैं, डूबे हैं, घिरे हैं - इस तरफ़ आदमी ने सोचा ही नहीं है! हम चारों तरफ़ से व्यापक से घिरे हैं, इस बात से प्रमाण आता है - हम इसमें डूबे हैं। इसके बाद मनुष्य में कल्पनाशीलता है। कल्पनाशीलता केवल मनुष्य में ही है। कल्पनाशीलता के आधार पर ही हम "ज्ञान" तक पहुँचते हैं। व्यापक ही ज्ञान है।

इस प्रस्ताव को जब जीने में परीक्षण करने जाते हैं, तब यह स्वीकार हो जाता है।

प्रश्न: परीक्षण कैसे करें?

उत्तर: इस समझ से जीना ही इसका परीक्षण है। आपके जीवन में ज्ञान (व्यापक) कल्पनाशीलता के रूप में है ही। आपके शरीर में व्यापक ऊर्जा-सम्पन्नता के रूप में है ही। इसी को अनुभव करने की बात है। स्वयं का निरीक्षण-परीक्षण करने से ही अनुभव होगा।

कल्पनाशीलता के आधार पर ही हम ज्ञान तक पहुँचते हैं। हर मनुष्य में कल्पनाशीलता प्राकृतिक विधि से एक अधिकार है। उस अधिकार को अध्ययन के लिए प्रयोग करने की बात है।

समझदारी से समाधान, और श्रम से समृद्धि प्रमाणित होती है।

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (भोपाल, अक्टूबर २००८)

3 comments:

Devansh Mittal said...

I was thinking on very similar things just few days back. Satta sthiti poorna hai, aur prakrati sthiti sheel hai, satta ki sthiti poornata, prakrati ke liye prerana strot hai, kyunki prakrati satta mein bheegi, doobi ghiri hui hai.
Satta mein sampraktata ke karan hi vikas aur jagrati kram hain.
It was a good post.

Anonymous said...

Every entity is active. We can see that in everyday life. Every smaller entity within the bigger entity is also active and has certain behavior. Every minuscule particle, you can imagine is active and has certain behavior. This can easily be understood. Behind this certain behavior, there has to be something which is always same irrespective of time and place. This is what we call satta or mool urja or absolute energy. Because it does not change, that is why we can not imagine any begining or end of it. Because it is same at every place, we can not think of any boundaries to it.

This absolute energy becomes the reason for entities to come together and co-exist and form a larger entity in existence. Hence this absolute energy is the reason behind co-existence. Co-existence always happens in a way that each smaller entity co-exists with each other and the entity thus formed also co-exists with rest of entities. If that does not happen, that entity thus formed does not sustain and remains only temporary.

Thus the whole evolution is driven by this absolute energy only.

Is this absolute energy is same as space ? well what else we can imagine it to be ....

Anonymous said...

Existence is always as coexistence only. There is no other way to you can imagine it.

Absolute energy or satta is the energy behind co-existence. What happens when entities(atoms ) co-exist? They move towards perfection which can be either structural, activity or behavior kind. Or in other words, due to this absolute energy being there in every atom ( which form the entity) , it generates a force or drive in every entity to move the constituent atoms towards perfection in one of these 3 kind of perfections, based on the type of entity ( atoms ) . This is the ultimate goal/reason/basis behind entity 's roop, gun, savbhav , dharma ( the move of constituents atoms towards perfection ).