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Saturday, November 29, 2008

चेतना विकास

चेतना-परिवर्तन की परिकल्पना ईश्वर-वादियों ने दिया। भौतिक-वादी ऐसी परिकल्पना भी दे नहीं पाये। भौतिक-वादियों के पास चेतना-परिवर्तन की प्रेरणा देने के लिए कोई अर्हता नहीं है। भौतिक वाद के पास ऐसा कोई माद्दा ही नहीं है, वह बीज ही नहीं है।

चेतना-विकास से मध्यस्थ-दर्शन का क्या आशय है?

चेतना विकास से आशय है - जीव-चेतना से मानव-चेतना में संक्रमित होना। जीव-चेतना का अर्थ है :- प्रिय-हित-लाभ दृष्टियों से विचार करते हुए चार विषयों (आहार, निद्रा, भय, और मैथुन) और पाँच संवेदनाओं (शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध) के लिए जीना। मानव-चेतना का अर्थ है - ज्ञान (सह-अस्तित्व दर्शन ज्ञान, जीवन-ज्ञान, मानवीयता पूर्ण आचरण ज्ञान) और उससे अनुबंधित विवेक और विज्ञान के अनुसार जीना। ज्ञान-विवेक-विज्ञान कुल मिला कर मानव-चेतना का विस्तार है। मध्यस्थ-दर्शन मानव-चेतना में संक्रमित होने के लिए अध्ययन विधि (शिक्षा) को प्रस्तावित करता है।

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी २००७, अमरकंटक)

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