सत्ता में संपृक्त होने से हर इकाई क्रियाशील है। बिना ऊर्जा के क्रियाशीलता हो नहीं सकती। सत्ता ही वह ऊर्जा है जिसमें एक-एक संपृक्त होने के कारण क्रियाशील है। हर इकाई की क्रियाशीलता ही उसके निश्चित आचरण के रूप में प्रकट होती है। जैसे दो अंश का परमाणु अपने में क्रियाशील है, और वह अपने निश्चित आचरण को प्रकट करता है। वैसे ही एक झाड़ भी अपने में क्रियाशील है, और वह अपने निश्चित आचरण को प्रकट करता है। मनुष्य के साथ ऐसा नहीं है। मनुष्य क्रियाशील तो है, पर आचरण-शील नहीं है - मतलब अभी तक मनुष्य अपने निश्चित आचरण को प्रकट नहीं किया है। अब इसको कैसे सुधार जाए? निर्विरोध पूर्वक कैसे किसको सुधारा जाए? विरोध पूर्वक कोई सुधार होता नहीं है। दमन पूर्वक भी कोई सुधार होता नहीं है। विरोध का विरोध और विरोध का दमन आदमी करके देख चुका है, इससे कोई सुधार होता नहीं है। यहाँ हम कह रहे हैं - विरोध का विजय। यह एक साधारण बात है। इसमें विशेष नाम की कोई चीज नहीं है।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (भोपाल, अक्टूबर २००८)
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