ANNOUNCEMENTS



Friday, November 7, 2008

अध्ययन विधि से बुद्धि में बोध होता है.

लिखना सूचना है। पढ़ना शब्द है।
शब्द का स्मरण अध्ययन नहीं है।
शब्द के अर्थ को समझना अध्ययन है।

शब्द का अर्थ हमारा स्वीकृति होता है - यह स्मरण नहीं है। स्वीकृति बुद्धि में बोध रूप में होता है। शब्द का अर्थ जब बुद्धि में आता है - तब हम समझे हैं। शब्द का अर्थ बुद्धि में ही स्वीकृत होता है - उसके पहले भी नहीं, उसके बाद भी नहीं।

अर्थ को समझने के बाद बुद्धि में ही उसको प्रमाणित करने की प्रवृत्ति होती है। बुद्धि में जब सह-अस्तित्व बोध होता है - तब आत्मा में स्वयं की प्रव्रत्ति रहती है - अस्तित्व में अनुभव करने की। बुद्धि में बोध होने पर आत्मा का अस्तित्व में अनुभव करना भावी है। उसके लिए कोई training की ज़रूरत नहीं है। जीवन का मध्यांश अनुभव के योग्य रहता ही है - इसलिए बुद्धि में बोध के बाद आत्मा अनुभव करता ही है।

बुद्धि में बोध होने के लिए सर्वसुलभ विधि अध्ययन-विधि ही है। अध्ययन के लिए मन को लगा देना ही अभ्यास है।

अनुभव के फलस्वरूप प्रमाण बोध बुद्धि में होता है। इस अनुभव-मूलक प्रमाण बोध को प्रमाणित करने के क्रम में चित्त में चित्रण, वृत्ति में न्याय-धर्म-सत्य के अर्थ में तुलन/विश्लेषण, और मन उसी के अनुरूप आस्वादन-चयन के रूप में प्रमाणित हो जाता है। इस ढंग से जीवन अनुभव के बाद जीवन अनुभव के साथ तदाकार हो जाता है।

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६, अमरकंटक)

No comments: