दर्शन स्थिति-गति है। स्थिति में अनुभव है। गति में विचार आ गया। अनुभव के स्वरूप को स्पष्ट कर पाना - यह दर्शन है। अनुभव की अभिव्यक्ति, सम्प्रेश्ना, और प्रकाशन के साथ चित्रण रहता ही है। अनुभव बीज रूप में रहता है, सम्पेश्ना कवच रूप में रहती है।
अनुभव सम्पन्नता के बाद आत्मा में जो बीज रूप में अनुभव है - वह मनुष्य की परस्परता में संप्रेषित होता है। "यह अनुभव का मुद्दा है" - यह अंगुली-न्यास होता है। जैसे - व्यापक वस्तु आपको बोध कराने के लिए मुझको संप्रेषित होना ही पड़ेगा। व्यापक वस्तु का अपने चित्त में चित्रण करने के लिए मेरे पास अनुभव है। व्यापक वस्तु की महिमा करने जाता हूँ - तो उसको अपने चित्त में चिंतन करने का माद्दा मेरे पास है। जैसे - पारगामियता और पारदर्शिता का चिंतन करने का माद्दा मेरे पास है। व्यापक अनुभव का मुद्दा है।
मैं व्यापक वस्तु के बारे में बोलता हूँ, आप सुनते हैं। सुनने से व्यापक वस्तु के बारे में आप जाते हैं। व्यापक वस्तु की पारगामियता और पारदर्शिता को जब मैं स्पष्ट करता हूँ तो वह आपके मन में पहुँचता है, विचार में पहुँचता है, चित्रण में पहुँचता है। इस का साक्षात्कार आपमें तुलन पूर्वक होता है, जिसके स्वीकृत होने पर आप में बोध और अनुभव हो ही जाता है। इस तरह व्यापक आपके अनुभव में आ गया।
अनुभव को बताया जा सकता है। अनुभव को बताने का प्रयोजन है - मानव-परम्परा को जागृत करना।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी २००७, अमरकंटक)
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