प्रश्न: अपनी पिछली पीढी (माता-पिता आदि) के प्रति कृतज्ञता और सम्मान का ठोस आधार क्या हो?
उत्तर: हमारे माता-पिता ने हमको यह शरीर दिया (जन्म दिया) - इस अर्थ में हम उनके प्रति कृतज्ञ हो सकते हैं। दूसरे - वे जैसे भी रहे हों, हमारे अच्छे होने के लिए वे सदा आशा बनाए रखे - इसके लिए हम उनके प्रति कृतज्ञ हो सकते हैं। ये दोनों मौलिक बातें हैं। ये टलने वाली बातें नहीं हैं। तीसरे - बचपन में वे हमारी सेवा किए हैं, उसके लिए हम उनके प्रति कृतज्ञ हैं।
इन तीन बिन्दुओं को क्या मिटाया जा सकता है? इनके लिए केवल कृतज्ञ ही हुआ जा सकता है। इस तरह हमको पिछली पीढी के प्रति कृतज्ञ होने का स्त्रोत मिल गया।
सम्मान करने के बारे में - हमारे अभिभावक हमारा शुभ ही चाहते रहे हैं, उन्होंने मेरा अशुभ नहीं चाहा है, इस आधार पर हम उनका सम्मान कर सकते हैं। इसमें किसको क्या तकलीफ है?
बुजुर्गों को हम सिखाने-समझाने की बात स्वप्न में भी न सोचा जाए! हमसे कोई बुजुर्ग सीखेगा नहीं। हमारे पिताजी हमसे तो सीखने वाले नहीं हैं। पिताजी का हम सम्मान कर सकते हैं, वे हमारा शुभ चाहते रहे - इस आधार पर।
अभी आज की शिक्षा प्राप्त बच्चों का सोच ऐसा जाता है - हमारे बुजुर्गों ने अपने व्यसन के अर्थ में संतान को पैदा किया! यहाँ ले गए। "आधुनिक" विज्ञान संसार ने हमको यहाँ ला कर खड़ा कर दिया है। इसमें क्या न्याय होगा - आप बताओ? बहुत कष्ट-दायक बात है न यह? ऐसे कष्ट-दायक कसौटी पर जाने के बाद हमारा जगह कहाँ है? क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए? इस मानसिकता से सोचने पर बुजुर्गों की सेवा करने के स्थान पर उनसे घृणा करना बनता है। जबकि सह-अस्तित्व वादी विधि से कैसे आसानी से कृतज्ञता और सम्मान मूल्यों के अर्थ में अपने बुजुर्गों की सेवा करने का रास्ता निकल जाता है।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी २००७, अमरकंटक)
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