व्यापक में प्रकृति प्रेरणा पाने योग्य स्थिति में है। प्रकृति व्यापक में स्वयं स्फूर्त विधि से प्रेरणा पाता ही रहता है। व्यापक ऊर्जा स्वरूप में है। प्रकृति व्यापक में संपृक्त होने के कारण ऊर्जा-संपन्न रहती ही है। इस सम्पृक्त्ता के कारण ही प्रकृति में क्रियाशीलता है। यह क्रियाशीलता पूर्वक ही सह-अस्तित्व सहज नियति-क्रम का प्रकटन है। नियति-क्रम है - विकास-क्रम, विकास, जागृति-क्रम, जागृति।
सह-अस्तित्व को न पहचानने से, जीवन को न पहचानने से, मानवीयता पूर्ण आचरण को न पहचानने से - इसके विपरीत कुछ मान्यताएं रहती हैं। इन मान्यताओं में परस्पर कोई तालमेल न बैठने से मनुष्य-जाति को कोई निश्चित समझदारी हाथ लगा नहीं - जिससे न्याय प्रदायी क्षमता स्थापित की जा सके, सही कार्य-व्यवहार किया जा सके, सत्य-बोध कराया जा सके। विगत की मान्यताओं से इनको लेकर मानव जाति - ज्ञानी, अज्ञानी, और विज्ञानी - सर्वथा असफल रहे। यह फ़ैसला हम अपने में नहीं कर पाते हैं, तो इस प्रस्ताव के अध्ययन में हम आगे बढ़ नहीं सकते। विगत की किसी मान्यता के साथ इस प्रस्ताव का गुड-गोबर ही करेंगे। गुड-गोबर करेंगे तो न गुड हाथ लगना है, न गोबर!
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी २००७, अमरकंटक)
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