आचरण ही नियम है।
दो अंश का परमाणु भी आचरण करता है।
अणु भी आचरण करता है।
अणु रचित रचनायें भी आचरण करती हैं।
प्राण-कोशा भी आचरण करता है।
प्राण-कोशा से रचित रचना भी आचरण करता है।
गठन-तृप्त परमाणु (जीवन) भी आचरण करता है।
जीव (जीव-शरीर और जीवन का संयुक्त स्वरूप) वंश-अनुशंगियता विधि से आचरण करता है।
जीवन जागृत हो कर मानव परम्परा में मानवीयता पूर्ण आचरण करता है।
सह-अस्तित्व स्वरूपी अस्तित्व में इतना ही है।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (दिसम्बर २००८, अमरकंटक)
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