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Sunday, January 18, 2009

आचरण ही नियम है

आचरण ही नियम है।

दो अंश का परमाणु भी आचरण करता है।

अणु भी आचरण करता है।

अणु रचित रचनायें भी आचरण करती हैं।

प्राण-कोशा भी आचरण करता है।

प्राण-कोशा से रचित रचना भी आचरण करता है।

गठन-तृप्त परमाणु (जीवन) भी आचरण करता है।

जीव (जीव-शरीर और जीवन का संयुक्त स्वरूप) वंश-अनुशंगियता विधि से आचरण करता है।

जीवन जागृत हो कर मानव परम्परा में मानवीयता पूर्ण आचरण करता है।

सह-अस्तित्व स्वरूपी अस्तित्व में इतना ही है।

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (दिसम्बर २००८, अमरकंटक)

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