ANNOUNCEMENTS



Saturday, January 24, 2009

अध्ययन, वस्तु-बोध, अनुभव, प्रमाण

अध्ययन से हम साक्षात्कार पूर्वक वस्तु-बोध तक पहुँच जाते हैं। उसके बाद अनुभव होना भावी हो जाता है। फ़िर अनुभव को प्रमाणित करना हर व्यक्ति का दायित्व है।

प्रमाण अनुभव मूलक विधि से ही सम्भव है। यह प्रमाण आचरण के स्वरूप में ही होता है।

जब तक हम शब्द का उच्चारण करते हैं - हमको वस्तु-बोध हो गया, यह विश्वास नहीं होता। अनुभव होने का प्रमाण आचरण ही है।

अनुभव होने के बाद मानवीयता पूर्ण आचरण होता ही है। मानवीयता पूर्ण आचरण का स्वरूप है - मूल्य, चरित्र, और नैतिकता। आचरण के साथ समाधान, और समाधान के साथ समृद्धि होती है। आचरण से, या जीने से ही यह स्पष्ट होता है - वस्तु-बोध हुआ कि नहीं?

व्यवहार में यदि किसी से यदि मानवीयता पूर्ण आचरण मिलता है - तो उसमें शंका करने की क्या जरूरत है? मानवीयता पूर्ण आचरण, समाधान, समृद्धि को कोई व्यक्ति प्रमाणित करता है - मतलब वह जागृत है। जैसे - कल आप ही कहोगे कि "हम समझ गए"। अब उस पर मेरा अविश्वास करने की कोई बात ही नहीं है।  आपके सत्यापन पर मेरा विश्वास करने के अलावा और कुछ नहीं करना बनता - जब तक आप के आचरण से उस सत्यापन के विपरीत बात का संकेत नहीं मिलता। आप जो कह रहे हो - आप के अनुसार वह ठीक है।   यदि आगे चल कर उसमे कमी मिलती है तो उसका सुधार होना भावी हो जाता है.  इस तरह कोई दबाव-खिंचाव है ही नहीं!

अनुभव पहले किसी को नहीं हुआ - यह मैंने नहीं कहा है।
अनुभव प्रमाणित नहीं हुआ, जागृति का परम्परा नहीं बना - यह जोर से कहा है।

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी २००७, अमरकंटक)

No comments: