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Sunday, January 4, 2009

हम स्वयं प्रसन्न हुए बिना समाधान को व्यक्त नहीं कर सकते.

नागराज जी : आप जो इतने समय से इस प्रस्ताव के अध्ययन में लगे हैं, आपके अन्तःकरण से प्रसन्नता बहा कि नहीं?

उत्तर: नहीं। अभी और समझना शेष है, ऐसा ही लगता है।

हम स्वयं प्रसन्न हुए बिना समाधान को व्यक्त नहीं कर सकते। इसको मैंने आजमा लिया। इसको अथा से इति तक छू-छू कर देख लिया। स्वयं में समाधानित होने के बाद ही लोकव्यापीकरण की बात है। कोई-कोई लोग थोड़ी बात को पा कर प्रसन्न हो जाते हैं, व्यक्त हो जाते हैं। कोई थोड़ा ज्यादा पा कर प्रसन्न हो पाते हैं, तो कोई पूरा पा कर ही प्रसन्न हो पाते हैं। वह आपके अपने संस्कार के अनुसार ही होगा। उसका कोई मात्रा fix नहीं किया जा सकता।

सन १९७५ से अब तक लोगों के साथ काम करने में मैंने जो अनुभव किया - वह यही है। अपने में प्रसन्नता की स्थली को पाये बिना हम व्यक्त नहीं हो सकते। अभी अपने परिवार में इस बात को व्यक्त करने वाले करीब १०० लोग हो गए। उसमें समझने के स्तरों का अलग-अलग रेंज बनता है। इनमें दूरी कम करने के लिए मैंने अनुभव-शिविर लगाना शुरू किया। अनुभव शिविर का आशय है - कौन अपने से सत्यापित करे कि हम पूरा समझ गए हैं। उसमें से कुछ लोग सहमति दिए हैं कि हम पूरा समझ गए हैं, कुछ ऐसा बताते हैं - पूरा समझने में अभी थोड़ा देरी है। "पूरा समझ गया हूँ" - ऐसा कहने वाले इने-गिने ही हैं। उनका परीक्षण करना अभी शेष है। उनका परीक्षण (अभी की स्थिति में) मैं ही करूंगा। अनुभव को प्रमाणित करने के समाधान-समृद्धि का ढांचा-खांचा जो मैंने present किया है - उसमें वे सभी सहमत हैं।

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद के आधार पर (दिसम्बर २००८, अमरकंटक)

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