जीवन समझता है। जीवंत-शरीर के साथ देखना बनता है।
जीवन जब समझता है - तभी देखना पूरा होता है।
भौतिकवाद ने "देखने" मात्र को पर्याप्त मान लेने से यंत्र को प्रमाण का आधार मान लिया। भौतिकवाद इस बात को नहीं पहचाना कि जीवन जब समझता है, तभी देखना पूरा होता है। यंत्र मनुष्य से ज्यादा सूक्ष्म देख सकता है, यह मान कर भौतिकवाद ने मनुष्य को प्रमाण का आधार नहीं माना। यंत्र को प्रमाण मान लिया। मनुष्य को छोड़ दिया। यह बात भौतिकवाद (और प्रचलित विज्ञान) के भटकाव का मूल कारण है। यह मुख्य बात है। इसको आपको समझने की ज़रूरत है।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (दिसम्बर २००८, अमरकंटक)
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