१० जनवरी, २००९ प्रातः १०:३० बजे श्रीमती नागरत्ना देवी, (बाबा श्री नागराज शर्मा की धर्म-पत्नी) जिनको सभी माता जी के नाम से जानते हैं का देहांत रायपुर में हुआ। उनका अन्तिम संस्कार ११ जनवरी को अमरकंटक में हुआ।
माता जी ने पूरी शरीर यात्रा बाबा के अनुसंधान को सफल बनाने के लिए समर्पित की। अपने इस संकल्प में वे पूरी तरह सफल हुई।
बाबा के साथ अगस्त २००६ में एक संवाद में उन्होंने बताया था:
"यहाँ अमरकंटक आने से पहले मैं हर दिन ८ घंटे काम करके एक हज़ार बजने वाला रुपया प्राप्त करता था। आज के दिन में उसका कीमत एक लाख रुपया तो होगा। अपने गुरु की आज्ञा लेकर मैंने समाधि के लिए फ़िर जाने का निश्चय किया। मेरी धर्म-पत्नी ने मेरे साथ चलने के लिए अपना मत दिया। मैंने अपनी श्रीमती से पूछा - यह बजने वाला पैसा जंगल में मिलेगा नहीं। मैं जंगल में कोई कंद-मूल लेने गया, और मुझे कोई बाघ खा गया - तो तुम क्या करोगी जंगल में मेरे साथ जा कर? वे बोली - तुम्हारा गणित ठीक नहीं है! तुमको पहले बाघ खायेगा, या मुझको खायेगा - कैसे बताओगे? कौनसे नक्षत्र से बताओगे? कौनसे विधि से बताओगे? उसके बाद मैंने कहा - अब जो होगा, सो होगा! माता जी की वह बात ने मुझको वहाँ से यहाँ तक पहुंचाया। माता जी यदि नहीं होते - मेरा साधना पूरा होता - मैं विश्वास नहीं करता।" - बाबा श्री नागराज शर्मा
१९७० के दशक में जब अनुसंधान सफल हुआ तो बाबा ने सर्व-प्रथम उन्ही को अपनी बात समझाने के लिए शुरुआत की। उसके उत्तर में उन्होंने कहा था - "आप लोक कल्याण करते रहो - मैं सेवा करती रहूँगी।" बाबा उनके इस निश्चय का सम्मान करते हुए आगे चलते रहे। उसके बाद से आज तक बाबा के पास आने वाले असंख्य आगंतुकों, जिज्ञासुओं की माता जी सेवा करती रही।
माता जी के प्रति हम सभी की कृतज्ञता सदा-सदा बनी रहेगी। उनके प्रति हम सभी अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं।
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